Atmadharma magazine - Ank 275
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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२७प
निजभाव
परभावमां ज रमी रह्यो
निजभावमां आव्यो नहि;
रे जीव! तुं तो दु:खथी
संसारमां ज भम्यो भम्यो.
हवे छोड ए परभावने,
निजभावमां तुं आव रे!
सुखथी भरेला आत्मामां
बस, मोक्ष मोक्ष ज मोक्ष छे.
वर्ष २३ : अंक : १० * वीर सं. २४९२ द्वि श्रावण
तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी * संपादक: ब्र हरिलाल जैन