ज्ञानमां जणाय अने अनुभवमां वेदनमां आवे. अनंत गुणना आनंदथी भरेला ए
आत्मवेदननुं वर्णन शब्दोमां के विकल्पमां न आवी शके. आत्मामां उपयोग जोडवा
माटे तेनी सर्वोत्कृष्ट प्रीति अने तेमां एकत्वबुद्धि थवी जोईए.
वैभवनुं सुख ते खरेखर सुख ज नथी, एटले शून्य साथे जेम संख्यानी सरखामणी न
थई शके तेम ईन्द्रिसुख (अर्थात् साचा सुखनी शून्यता) वडे अतीन्द्रिय महान सुखनुं
माप काढी शकाय नहि. अतीन्द्रिय सुखनुं माप अतीन्द्रियसुख वडे ज काढी शकाय. हवे,
ईन्द्र सम्यग्द्रष्टि होय छे, ने ते ईन्द्रने सम्यग्दर्शनना प्रतापे जे आत्मसुख होय छे ते
अतीन्द्रिय छे, ने तेना करतां भगवाननुं आत्मसुख अनंतगणुं छे.
आपी शकाय नहि. छतां तीर्थंकर भगवंतो साथे संबंध धरावता तीर्थो विशेषपणे
बिहार प्रान्तमां छे. केमके तीर्थंकरोनो विहार ए प्रदेशमां खूब थयो होवाथी ते प्रदेशनुं
नाम विहार पड्युं छे. बाकी मध्यप्रान्तमां पण घणा तीर्थो छे. दक्षिणदेशमां तीर्थो ओछा
छे परंतु त्यां जैनधर्मनो विपुल वैभव ठेरठेर भर्यो छे. उत्तर–