Atmadharma magazine - Ank 275
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 34 of 49

background image
: भादरवो : २४९२ आत्मधर्म : ३१ :
आत्मभावनारूप भजन
आ भजननी सामूहिक धून बाळकोने आनंद पमाडशे ने
उत्तम संस्कारोनुं सींचन करशे. सोनगढनी सभामां आ धून
बाळकोए गाई हती त्यारे बाळकोनो उत्साह जोईने सौने प्रसन्नता
थई हती. बालविभागना बाळको माटे ते धून अहीं आपी
छे.......सौ होंसथी गाजो.
गुणनो भंडार छुं; आनंदनो सागर छुं,
सहजानंद स्वरूप छुं; चैतन्यनो पिंड छुं.
प्रकाशनो पूंज छुं; विज्ञाननो घन छुं.
चिदानंद स्वरूप छुं; नित्यानंदरूप छुं.
परमात्म प्रकाश छुं; शक्तिनो खजानो छुं.
वीतराग स्वरूप छुं; शुद्धस्वरूपी आत्मा छुं.
चिदानंद भगवान छुं; अखंड अविचळ मूर्ति छुं.
परथी नीराळो छुं; राग–द्वेष विनानो छुं.
अनंत–नाथ भगवान छुं; चैतन्यनो विलास छुं.
सिद्धनो नातीलो छुं; शान्तस्वरूपी जीव छुं.
प्रकाशनो प्रकाशक छुं; अनादि पुराणपुरुष छुं.
ज्ञान–दर्शनमय छुं; अजर अमरस्वरूप छुं.
कोईनो कर्ता–हर्ता नथी; मारो कोई कर्ता नथी.
शुद्ध सदा अरूपी छुं; अनादि चैतन्य मूर्ति छुं.
अनंतगुणनो दरियो छुं; सुखथी हुं भरियो छुं.
विश्वनो हुं ज्ञायक छुं; परथी उदास छुं.
पंच परमेष्ठीनो भक्त छुं; जिनेश्वरनो नंद छुं.
सिद्धपदनो साधक छुं; अर्हंतनो उपासक छुं.
रत्नत्रयनो खजानो छुं; गुरुचरणनो दास छुं.
जीवत्वथी जीवुं छुं; स्वानुभव–प्रकाशी छुं.