: ३० : आत्मधर्म : भादरवो : २४९२
परमात्मा पासे हता, पण आ भरतक्षेत्रमां अवतार थतां तेमना विरह पडी गया.–
‘रे, रे, सीमंधरनाथना विरहा पड्या आ भरतमां’
(२८८) अहीं कहे छे के भूतार्थस्वभावने द्रष्टिमां लईने ज्यां आत्मा परिणम्यो त्यां
अंर्तद्रष्टिमां एने भगवानना भेटा थया; अंतरना चैतन्यसरोवरमां ते हंस
आनंदरूपी मोतीना चारा चरवा लाग्यो. राजहंस साधारण चारो न चरे, ए
तो साचा मोतीना चारे चरे; तेम समकिती हंस विकारना चारा न चरे, ए
तो शुद्धनयवडे, रागने भिन्न करीने अतीन्द्रिय आनंदरूपी साचा मोतीना
चारा चरे छे.
(२८९) चैतन्यशक्तिमां रहेलो गुप्त चमत्कार ज्ञानीए अंतरना स्वानुभववडे प्रगट
कर्यो छे. जगतने चैतन्यना चमत्कारनी खबर नथी, चैतन्यनी महत्ता तेणे
जाणी नथी. चैतन्यनी महत्ता रागथी पार छे. चैतन्यशक्तिना भंडारमांथी
ज्ञान–आनंदना निधान खोल्या ज करो, पण ते भंडार कदी खूटे तेम नथी.
शुद्धनयवडे ज्ञानी पोतामां आवा भंडारने देखे छे.
(२९०) ज्ञानीना आत्मामां अमृत वरस्या छे. समयसारमां आत्मानो शुद्धस्वभाव
बतावीने आचार्य भगवाने आ पंचमकाळमां अमृत रेडया छे. अहो, आवो
शुद्धस्वभाव–जेमां रागनो अंश नहि, जेमां भेदनो विकल्प नहि, आवा एक
भूतार्थ शुद्ध आत्माने अंतरद्रष्टिवडे धर्मीए अनुभवमां लीधो छे; ने एनुं
जीवन सफळ छे. एने माटे श्री गुरु कहे छे के ‘अमृत वरस्या छे तारा आत्ममां.’
जैनबद्री–श्रवणबेलगोलमां गोमटेश्वर बाहुबली भगवाननो महा मस्तकाभिषेक
दक्षिणदेशमां आवेल विश्वप्रसिद्ध प७ फूट ऊंची भगवान बाहुबलीस्वामीनी
अत्यंत धीर गंभीर प्रतिभासम्पन्न ध्यानस्थमूर्ति जे विश्वने आत्मिक साधनानो
सन्देश आपी रही छे, ते प्रतिमानो महामस्तकाभिषेक लगभग दर १२ वर्षे थाय छे;
आ साल ते महाअभिषेक थवानो हतो पण परिस्थितिवश ते मुलतवी रह्यो; हवे
आवतीसाल ता. १–१–१९६७ ना रोज महामस्तकाभिषेक थवानो छे. ए
महामस्तकाभिषेक करवा माटेनी पूर्वे तैयारीओ चाली रही छे. आ प्रसंगे लाख जेटला
जैनो तेमज जैनतरो त्यां एकठा थाय छे ने महान अभिषेक नीहाळीने पावन थाय छे.
आ अभिषेक उत्सव माटेनी स्तंभप्रतिष्ठा ता. २प–८–६६ना रोज हती; नांदीमंगल ता.
१८–१२–६६ ना रोज छे; पंचकल्याणकविधान वगेरे कार्यक्रम पण हवे प्रकाशीत थशे.
पू. कानजीस्वामीए आ बाहुबली भगवाननी यात्रा संघसहित बे वखत करी छे.