Atmadharma magazine - Ank 275
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९२
बहेन, हवे आपणा जैन समाजना बाळको जाग्या छे ने धर्मनो अभ्यास करवामां रस
लई रह्यो छे, एटले थोडा वखतमां दरेक ठेकाणे जरूर पाठशाळाओ चालु थई जशे. तमारा गाममां
पण वेलीवेली पाठशाळा शरू थाय ने तमे सौ होंसथी धार्मिक अभ्यास करो एम भावना भावीए.
प्र :– एम सांभळ्‌युं छे के पाप थई जाय ते जीव नरकमां जाय–तो ते वात साची छे!
(नं. १४पप जेतपुर)
उ :– भाई, जीवनमां क््यारेक पाप थई जाय तेथी ते जीव नरकमां ज जाय एवो
नियम नथी. परंतु जीवनमां जो पापभावनी तीव्रता थई जाय, ने तेनाथी पाछो न वळे तो
ते जीव नरकमां जाय. बाकी तो पहेलां जेणे पाप कर्युं होय छतां पाछळथी धर्मनी आराधना
वडे पापने नष्ट करीने मोक्ष पामी गया होय एवाय घणा जीवो छे. जेनुं चित्त धर्मनी
आराधनामां जोडाय एने एवां पापभाव होय ज नहि के नरकमां जवुं पडे. धर्मीनेय
कोईवार भूमिका अनुसार पापना परिणामो थता होय छे परंतु तेवा वखते तेमने आयुष
बंधातुं नथी. शुभ परिणामनी भूमिकामां ज तेने आयु बंधाय छे, एटले धर्मीनी गति
बगडती नथी. (कोईने पूर्वे अज्ञानदशामां नरक आयु बंधाई गयुं होय तो तेना पण स्थिति
अने रस एकदम ओछा थई जाय छे.) भाई! सदाय धर्मनी आराधनामां तत्पर रहेनारने
आ जगतमां कोई डर नथी.
सभ्य नं. 246 ना चार प्रश्नो
प्र. (१) :– नव तत्त्वोने अभूतार्थ कह्या तेमां जीवतत्त्व पण आवी गयुं; एटले
जीवतत्त्वने पण अभूतार्थ कह्युं ए कई रीते?
उ :– ते जीवतत्त्व भेदरूप अथवा अशुद्धतारूप लेवुं, नवतत्त्वसंबंधी जे विकल्पो छे
तेना वडे शुद्धजीवतत्त्व वेदनमां आवतुं नथी. जीव संबंधी विकल्प छूटीने ज्यारे परिणति
साक्षात् अंतरमां एकाकार थाय छे त्यारे ते परिणतिमां शुद्धजीव भूतार्थपणे प्रकाशमान थाय छे.
प्र. (२) :– भेदज्ञान थयुं न होय पण तेनो प्रयत्न करता होय तो तेनां परिणाम
केवा होय? तेनी रहेणी–करणी केवी होय?
उत्तर :– अंतरमां निजस्वभावनो महिमा करीने वारंवार परिणाम ते तरफ झूकता
होय, जगत तरफनो रस घणो मोळो पडी गयो होय, धर्मात्मानो संग एने अतिशय प्रिय
लागे ने आत्मस्वरूपनी प्राप्तिनी वात सांभळतां तेनुं हृदय झणझणी ऊठे. स्वकार्य साधवा
माटे ते उल्लसित होय. एनी रहेणी–करणी आत्मसाधननी पोषाक होय; पोतानी साधनामां
बाधा थाय एवुं कांई ते न करे.
प्र. (३) :– भेदज्ञान माटेनो सीधो ने सरल उपाय शुं?
उ :– भेदज्ञानी संतनी समीपमां रहीने तेओ कहे तेम करवुं ते;
प्र. (४) सम्यग्दर्शन थया पहेलां कोई मनुष्ये मनुष्यआयु बांधी लीधुं होय ने पछी
सम्यग्दर्शन पामे, तो ते जीव मनुष्यमांथी