: भादरवो : २४९२ आत्मधर्म : ३प :
मरीने सीधो मनुष्यमां ऊपजे?
उ :– हा; परंतु भोगभूमिना (असंख्य वर्षना आयुवाळा) मुनष्योमां ज
ऊपजे, कर्मभूमिमां न उपजे. (जे मनुष्य मरीने पाछो कर्मभूमिना मनुष्यमां उपजे ते
मिथ्याद्रष्टि ज होय.)
प्र :– बधा पोताना धर्मने ज साचो केममाने छे! सभ्य (नं. ७९)
उ :– जेओ सत्य धर्ममां रहीने पोताना धर्मने ज साचो माने छे तेमणे तो
सत्यधर्मनुं स्वरूप जाण्युं छे तेथी तेमां ते निःशंक छे.
अने जेओनो मानेलो धर्म सत्य न होवा छतां तेने साचो माने छे–तेनुं कारण
ए के तेमने साचा धर्मना स्वरूपनी खबर नथी.
साचा धर्मने साचो जाणवो, ने खोटा धर्मने खोटो ओळखावो–एमां कोई दोष नथी.
प्रश्न :– आत्माना जिज्ञासु मोक्षार्थीने कांई कार्य करवानुं रहे छे?
उत्तर :– हा, तेणे आत्माने साधवानुं खरुं महान कार्य करवानुं छे. अत्यार
सुधीनो काळ तो बाह्यकार्यनी चिन्तामां व्यर्थ खोयो, हवे आत्माने साधवानुं खरूं कार्य,
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप महान कार्य जिज्ञासु मुमुक्षुए करवानुं छे...ए ज एनुं खरुं
कार्य छे, ए ज सत्कार्य छे. (काम एक आत्मार्थनुं.... बीजो नहि मन रोग.)
प्रश्न :– जीव पोताना स्वरूपनो विचार करवा जाय छे त्यारे आत्मस्वरूपना
विचारने बदले मनमां बीजा विचार केम उत्पन्न थाय छे?
उत्तर :– उपयोग स्थिर थईने आत्मस्वरूपमां रहे तो बीजा विचार न आवे.
आत्मस्वरूपनी उग्र रुचि अने तीव्र चिन्तनना बळे पहेलीवार उपयोग ज्यारे स्वमां
झुके छे त्यारे त्यां बीजा विचारो होता नथी.....त्यां आनंदना अनुभव सहीत आत्मानुं
स्वसंवेदन थाय छे एटले सम्यग्दर्शन प्रगटे छे. सम्यग्दर्शन पछी पण जेटला प्रकारे
राग–द्वेषरूप अस्थिरता होय तेटला प्रकारे बीजा विचारो संभवे छे. तत्त्व–श्रद्धा साची
होय, आत्मानुं ज्ञान होय छतां तेमां उपयोगने एकाग्र करवा माटे ध्याननो विशिष्ट
प्रयत्न होय छे. त्यार पहेलां जिज्ञासुने निजस्वरूपना विचारमां–चिन्तनमां मन न
लागे ने बीजा विचारोमां ज रस रह्या करे तो ते पोतानी जिज्ञासुतानी खामी छे–एम
जाणीने बीजो बाह्यनो रस छोडीने आत्माना तीव्र रसपूर्वक तेमां चित्तने जोडवुं जोईए.
जेनो तीव्र रस होय तेमां चित्त जरूर जोडाय.
* मुंबईथी जयेश जैन जन्मदिवसे लखे छे के“बालविभागना सभ्य बन्या पछी
समजवानो रस जाग्यो छे. मारी बा मने रोज रात्रे धार्मिक वातो अने सिद्धान्तो समजावे छे.
सद्गुरुदेवना चरणोमां रहीने आत्माने समजवा माटे अखंड जागृती राखी शुद्ध आत्माने
समजुं एवी भावना छे.”