Atmadharma magazine - Ank 275
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९२ आत्मधर्म : ३७ :
तो हजी नाना छो, हजी तो मोटा थईने जीवनमां अनेक उत्तम कार्यो करवानां छे. तेमां
अत्यारथी आवी नजीवी बाबतमां हताशा केम पालवे? हताशाने जीवनमांथी खंखेरी
नांखजो ने उल्लासथी जीवनने भरी देजो. जीवनमां गमे तेवा प्रसंगो आवे तो पण
हताशाने प्रवेशवा देशो नहि....धैर्य अने आत्मबळथी आगळ ने आगळ वधजो.
अमदावादथी (सभ्य नं. ४४प) प्रवीणचंद्र जैन लखे छे. जन्मदिवसे अभिनंदन कार्ड
तथा गुरुदेवनो फोटो मळतां घणो ज हर्ष थयो; साथे एम पण थयुं के अरे, आयुष्यमांथी
एक वर्ष ओछुं थयुं ने आत्मानुं तो कांई कर्युं नथी. आ दिवसथी आत्महित करवानी घणी
भावना थई छे.
प्र
:– अगियार अंग ने नव पूर्व एटले शुं? (नं. ४प१)
:– तीर्थंकरभगवाने जे उपदेश आप्यो ते झीलीने गणधरदेवे जे शास्त्र रच्यां तेने
बारअंग कहेवाय छे; तेनां नाम–
(१) आचार–अंग
(२) सूत्रकृत–अंग
(३) स्थान–अंग (४) समवाय–अंग
(प) व्याख्याप्रज्ञप्ति (६) ज्ञातृधर्मकथा
(७) उपासकअध्ययन (८) अंतकृतदशांग
(९) अनुत्तरोपपादक (१०) प्रश्नव्याकरण
(११) विपाकसूत्रो
(१२) द्रष्टिवादअंग
आमांथी द्रष्टिवाद नामनुं जे बारमुं अंग छे तेना पेटामां १४ पूर्व समाय छे. ए १४
पूर्वमांथी अज्ञानीने वधुमां वधु ९ पूर्वनुं ज्ञान थई शके छे. १४ पूर्वनुं पूरुं ज्ञान सम्यग्द्रष्टिने
ज थाय. आ रीते ११ अंग ने नव पूर्व ए अज्ञानीना उघाडनी उत्कृष्ट मर्यादा छे.
प्र
:– ऋद्धिधारी एटले शुं? (नं. ४प१)
:– आत्मस्वरूपना आराधक जीवोने पवित्रतानी तेमज पुण्यनी अनेक प्रकारनी
ऋद्धि प्रगटे छे. ६४ प्रकारनी ऋद्धि छे, तेमां सौथी श्रेष्ठ ऋद्धि केवळज्ञान छे. कुंदकुंदाचार्यदेवने
आकाशमां गमननी ऋद्धि हती. जेमने आवी ऋद्धि प्रगटी होय तेमने ऋद्धिधारीमुनिवर
कहेवाय. शास्त्रोमां तेनुं घणुं सुंदर वर्णन आवे छे. कोईवार आपणे आत्मधर्ममां ते आपीशुं.