Atmadharma magazine - Ank 275
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ४० : आत्मधर्म : भादरवो : २४९२
[धर्मवत्सल बालबंधुओ, गया वखते प्रश्नो पूछया न हता तेथी तमने मजा नहि
पडी होय! आ वखते चार प्रश्नो आपीए छीए. जराक विचारीने जवाब लखजो. जवाब
पोस्टकार्डमां लखजो, तेथी साथे सभ्य नंबर तथा सरनामुं लखजो. बीजुं कांई तेमां न
लखशे; बीजुं लखवुं होय तो जुदा पत्रमां लखशो. जेमने नवा सभ्य थवानुं होय तेओ
पोतानुं नाम–सरनामुं, उमर, अभ्यास तथा जन्मदिवस एटली विगत लखीने (आत्मधर्म
बालविभाग, सोनगढ सौराष्ट्र) ए सरनामे मोकली आपे. सभ्य थवा माटे कांई फी होती
नथी; तमे सौ आनंदथी धर्ममां रस ल्यो ए ज फी छे.
]
* न वा प्र श्नो * [जवाब १० मी तारीख सुधी ज लखवा.]
१. मोक्षनो मार्ग सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप छे, तो राग तेमां आवे के नहीं?
२. बालब्रह्मचारी तीर्थंकर भगवान केटला? अने कया कया?
३. संसारमां चार गति छे–नरक, तिर्यंच, मनुष्य ने देव; आ चार गतिमां तो जीव
घणीवार जई आव्यो; तो हवे ए चार गतिथी जुदी पांचमी एक सरस मजानी
गति छे, जे गतिमां जवानुं आपणने बहु गमे छे,–ते गति शोधी काढो.
४. [र ण व ध ग दे] आ छ अक्षरमां आपणा जैनधर्मना एक घणा मोटा
महात्मा बिराजे छे, तेमने ओळखी ल्ये.
आ गायना गोवाळने तमे
ओळखो छो? केवो सरस मजानो
भद्रिक एनो चहेरो छे! ए कोण
छे? ने शुं करे छे? ते जाणीने
तमने घणो ज आनंद थशे. तमे
एने ओळखी लेजो. नहितर
आवता अंकमां नानकडी कथाद्वारा
तेनी ओळखाण करावीशुं.