मंथनथी पू. गुरुदेवे प्रवचनमां जे खास भावो
कह्या तेनो सार अहीं आपवामां आव्यो छे.
लेनारने आवा क्रम–अक्रम स्वभावनो निर्णय पण थई जाय छे. सर्वज्ञदेवे त्रणकाळ
जाण्या माटे क््रमबद्धपर्याय थाय–एम सर्वज्ञताना आधारे तो क्रमबद्धपर्यायनी सिद्धि
थाय ज छे, पण अहीं तो आत्मानी ज शक्तिना आधारे क्रमबद्धपर्यायनी सिद्धि थाय
छे, ते वात आजे बपोरना मंथनमां आवी, ते अत्यारे कहेवाय छे.
पर्याय ते पण प्रतीतमां आवी ज गया. आ रीते उत्पादव्ययध्रुवत्व शक्तिवडे पण
क्रमबद्धपर्याय सिद्ध थई जाय छे. आम तो आ क्रमबद्धपर्यायनी वात घणा न्यायथी
आवी गयेली छे, पण आजे आ जुदी ढबथी कहेवाय छे. द्रव्यमां ज एवी शक्ति छे के
पर्यायो क्रमेक्रमे प्रवर्ते, ने गुणो एकसाथे अक्रमे रहे. एटले द्रव्यस्वभावनी प्रतीतमां
एनी प्रतीत पण आवी जाय छे.
स्वभावनी द्रष्टिथी ज तेना धर्मनो साचो निर्णय थाय छे. एकेक गुणना भेदना लक्षे
यथार्थ निर्णय थतो नथी. गुण कोनो? के गुणीनो; ते गुणी एवा आत्मद्रव्य