Atmadharma magazine - Ank 275a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्म धर्म : आसो : २४९२
आत्मस्वभावनी अनुभूतिमां तेना सर्वे गुणोना
निर्मळकार्यनी प्रतीत भेगी समाई जाय छे
भादरवा सुद १२ (सं. २०२२) ना रोज
आ ‘उत्पादव्ययध्रुवत्व शक्ति’ उपरना विशेष
मंथनथी पू. गुरुदेवे प्रवचनमां जे खास भावो
कह्या तेनो सार अहीं आपवामां आव्यो छे.
आत्मानी ४७ शक्तिमां उत्पादव्ययध्रुवत्व नामनी एक शक्ति छे. क्रमप्रवृत्ति
एटले उत्पाद–व्यय, ने अक्रमप्रवृत्ति एटले ध्रुवता, आत्माना स्वभावने द्रष्टिमां
लेनारने आवा क्रम–अक्रम स्वभावनो निर्णय पण थई जाय छे. सर्वज्ञदेवे त्रणकाळ
जाण्या माटे क््रमबद्धपर्याय थाय–एम सर्वज्ञताना आधारे तो क्रमबद्धपर्यायनी सिद्धि
थाय ज छे, पण अहीं तो आत्मानी ज शक्तिना आधारे क्रमबद्धपर्यायनी सिद्धि थाय
छे, ते वात आजे बपोरना मंथनमां आवी, ते अत्यारे कहेवाय छे.
अनंतशक्तिसम्पन्न आत्माने अनुभवमां लेतां तेनी आ उत्पाद–व्यय–
ध्रुवत्वशक्ति पण प्रतीतमां आवी ज गई, ने तेनी प्रतीत थतां अक्रमरूप गुण ने क्रमरूप
पर्याय ते पण प्रतीतमां आवी ज गया. आ रीते उत्पादव्ययध्रुवत्व शक्तिवडे पण
क्रमबद्धपर्याय सिद्ध थई जाय छे. आम तो आ क्रमबद्धपर्यायनी वात घणा न्यायथी
आवी गयेली छे, पण आजे आ जुदी ढबथी कहेवाय छे. द्रव्यमां ज एवी शक्ति छे के
पर्यायो क्रमेक्रमे प्रवर्ते, ने गुणो एकसाथे अक्रमे रहे. एटले द्रव्यस्वभावनी प्रतीतमां
एनी प्रतीत पण आवी जाय छे.
क्रम–अक्रमवर्तनरूप जे उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व स्वभाव, ते स्वभावनो निर्णय
करनारनी द्रष्टि क्यां जाय छे?–आत्माना स्वभावमां जाय छे, केमके आत्माना
स्वभावनी द्रष्टिथी ज तेना धर्मनो साचो निर्णय थाय छे. एकेक गुणना भेदना लक्षे
यथार्थ निर्णय थतो नथी. गुण कोनो? के गुणीनो; ते गुणी एवा आत्मद्रव्य