जेनी पर्यायो क्रमेक्रमे उत्पाद–व्ययरूप थाय; आवुं उत्पाद–व्ययध्रुवस्वरूप आत्मद्रव्य
द्रष्टिमां लेवुं ते सम्यग्दर्शन छे. आवा उत्पाद–व्यय ने ध्रुवतारूप आत्मानो एक
गुण छे. आवा गुणसहित आत्मा धर्मीने अनुभूतिमां आव्यो; त्यां विकल्पनुं
कर्तृत्व न रह्युं. पर्यायबुद्धि न रही. द्रव्यद्रष्टिमां रागथी भिन्न निर्मळ परिणमन
थयुं, त्यां राग ते काळे होय पण ते कर्तृत्वमांथी बहार रही गयो ते काळे तेनुं ज्ञान
रही गयुं पण कर्तृत्व न रह्युं. आवुं द्रव्यद्रष्टिनुं फळ छे. आमां अपूर्व धर्म छे.
वस्तुना स्वभावमां ज एवो धर्म छे के ते उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्वरूप धर्मना आधारे
क्रमबद्धपर्यायनी सिद्धि थई जाय छे, ते बताववुं छे. आत्मानी शक्तिना आधारे ज
तेनी पर्यायनुं क्रमबद्धपणुं सिद्ध थई जाय छे.
वस्तुनी उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्वशक्तिने ख्यालमां लेतां आ वात ख्यालमां आवी जाय
छे, केमके आत्मानी आ शक्तिनुं ज एवुं कार्य छे के गुणोथी अक्रमपणे ने पर्यायोथी
क्रमपणे वर्ते.
पर्यायो. आवा गुण–पर्यायसहित उत्पाद–व्यय–ध्रुवस्वभाववाळा आत्माने द्रष्टिमां
लेतां सम्यग्दर्शन थाय छे. आत्माने अभेद द्रष्टिमां लीधो तेमां भेगो आ गुण
आवी ज