Atmadharma magazine - Ank 275a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्म धर्म : आसो : २४९२
अहो, द्रव्यनी द्रष्टिमां तो गंभीरता छे; ते अनंत गुणने पोतामां समावी दे
छे. अनुभूतिमां धर्मीने एवुं द्रव्य आव्युं के जेना अनंत गुणो अक्रमे ध्रुव रहे, ने
जेनी पर्यायो क्रमेक्रमे उत्पाद–व्ययरूप थाय; आवुं उत्पाद–व्ययध्रुवस्वरूप आत्मद्रव्य
द्रष्टिमां लेवुं ते सम्यग्दर्शन छे. आवा उत्पाद–व्यय ने ध्रुवतारूप आत्मानो एक
गुण छे. आवा गुणसहित आत्मा धर्मीने अनुभूतिमां आव्यो; त्यां विकल्पनुं
कर्तृत्व न रह्युं. पर्यायबुद्धि न रही. द्रव्यद्रष्टिमां रागथी भिन्न निर्मळ परिणमन
थयुं, त्यां राग ते काळे होय पण ते कर्तृत्वमांथी बहार रही गयो ते काळे तेनुं ज्ञान
रही गयुं पण कर्तृत्व न रह्युं. आवुं द्रव्यद्रष्टिनुं फळ छे. आमां अपूर्व धर्म छे.
जुओ आ क्रमबद्धपर्यायनुं रहस्य! ठेठ अंतरस्वभावमां द्रष्टि गई त्यारे
क्रमबद्धपर्यायनी प्रतीत साची थई.
सर्वज्ञदेवे जोयुं छे माटे क्रमबद्ध छे–एमां तो सर्वज्ञनो आधार आपीने
क्रमबद्धनी सिद्धि थई.–ए न्याय तो घणी वार कहेवाई गयो छे. अत्यारे तो,
वस्तुना स्वभावमां ज एवो धर्म छे के ते उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्वरूप धर्मना आधारे
क्रमबद्धपर्यायनी सिद्धि थई जाय छे, ते बताववुं छे. आत्मानी शक्तिना आधारे ज
तेनी पर्यायनुं क्रमबद्धपणुं सिद्ध थई जाय छे.
(आवो क्रमवर्तीरूप उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व स्वभाव तो बधाय द्रव्योमां छे,
जडमां पण छे; पण आपणे तो अहीं आत्मानी वात अत्यारे मुख्य लेवी छे)
वस्तुनी उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्वशक्तिने ख्यालमां लेतां आ वात ख्यालमां आवी जाय
छे, केमके आत्मानी आ शक्तिनुं ज एवुं कार्य छे के गुणोथी अक्रमपणे ने पर्यायोथी
क्रमपणे वर्ते.
आत्माना अनंतगुण सर्वज्ञभगवाने जोयां, तेमां एक गुण उत्पाद–व्यय–
ध्रुवता छे, ध्रुवता एटले अक्रम रहेता गुण, ने उत्पाद–व्यय एटले क्रमेक्रमे थती
पर्यायो. आवा गुण–पर्यायसहित उत्पाद–व्यय–ध्रुवस्वभाववाळा आत्माने द्रष्टिमां
लेतां सम्यग्दर्शन थाय छे. आत्माने अभेद द्रष्टिमां लीधो तेमां भेगो आ गुण
आवी ज