Atmadharma magazine - Ank 275a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९२ आत्म धर्म : १७ :
गयो, एटले गुणनुं अक्रमवर्तीपणुं ने पर्यायनुं क्रमवर्तीपणुं–एवी प्रतीत आत्मानी
अनुभूतिमां समाई ज गई. एना वगर आत्माने मान्यो ज न कहेवाय.
आत्मामां उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप शक्ति त्रिकाळ छे. हवे तेनुं कार्य शुं? –के गुणोने
अक्रमरूप राखवा ने पर्यायोने क्रमरूप प्रवर्ताववी–एवुं आ शक्तिनुं कार्य छे. त्रणेकाळे
वस्तुमां आवुं अक्रम ने क्रमवर्तीपणुं छे.
आत्मामां गुणअपेक्षाए सद्रशता ने पर्यायअपेक्षाए विसद्रशता–एवो जे
स्वभाव छे तेमांथी पण आ वात नीकळे छे.
२१ मी अकर्तृत्वशक्तिमां, विकारभावनुं कर्तृत्व उपराम पामी गयुं–तेनी वात
छे. एटले के द्रव्यद्रष्टि थतां आत्मा विकारनो अकर्ता थयो, रागने जाणवानुं रह्युं पण
तेनुं कर्तृत्व ज्ञानमां न रह्युं. आवी अकर्तृत्वशक्तिथी आत्मा रागना अकर्तापणे शोभी
ऊठ्यो. सम्यग्दर्शन थतां जे अनंतशक्तिसम्पन्न आत्मद्रव्य प्रतीतमां आव्युं तेनी साथे
तेनी आवी अकर्तृत्वशक्ति पण प्रतीतमां आवी, एटले रागनुं अकर्तापणुं प्रगट्युं.–
आवुं अकर्तृत्वशक्तिनुं कार्य छे. सम्यग्दर्शन थतां बधाय गुणो स्वकार्यने करे छे,
निर्मळपणे परिणमन शरू थाय छे.
सम्यग्द्रष्टिने रागनुं अकर्तृत्व केम थयुं?–के आत्मानी अनुभूतिमां रागना
अकर्तापणारूप अकर्तृशक्ति पण भेगी अनुभूतिमां आवी गई छे, एटले त्यां रागनुं
कर्तृत्व रह्युं नथी, रागना अकर्तारूप परिणमन थयुं छे. आत्माना स्वभावनी द्रष्टि थतां
आवा अकर्तृत्वरूप निर्मळपर्यायनो क्रम शरू थयो ते द्रष्टिनुं फळ छे. रागनुं कर्तृत्व
आत्माना कोई गुणमां नथी एटले आत्मानी प्रतीत थतां कोई गुणमां रागना
कर्तृत्वरूप परिणमन रहेतुं नथी. रागनुं ज्ञान भले रहे पण तेनुं कर्तृत्व रहेतुं नथी.
द्रव्य–गुणमां जे अकर्तृत्व हतुं ते अकर्तृत्व (स्वभावद्रष्टि थतां) पर्यायमां पण व्यापी
गयुं, एटले पर्याय पण रागना अकर्तृत्वरूप थईने परिणमी. आ रीते, धर्मीने राग
वखतेय अकर्तृत्वशक्ति ‘रागना कर्तृत्वथी उपरामरूपे’ परिणमी रही छे, रागना
अभावरूपे पोते परिणमे छे. आनुं नाम ‘ज्ञान आस्रवोथी निवर्त्युं’ एम कहेवाय छे.
आवुं कार्य थाय त्यारे अकर्तृत्व