रागनुं य कर्तृत्व के स्वामीत्व रहेतुं नथी. ते–ते काळना व्यवहारने जाणे छे पण तेनो ते
स्वामी थतो नथी. रागरूप व्यवहार छे तेनो अकर्ता थयो त्यारे तेना व्यवहारने
व्यवहार कह्यो.
आवुं स्वस्वामीत्वसंबंध–शक्तिनुं कार्य प्रगट्युं.
रागनुं कर्तृत्व रहे एम बने नहि. स्वभावने जाणतां पर्याय ते तरफ वळे एटले रागादि
परभावोथी निवृत्ति थाय ज. पर्याय अंतर्मुख थईने आत्माने जाणे ने परभावोथी
निवृत्ति न थाय एम बने ज नहि. स्वभावने जाणतां ज रागनुं कर्तृत्व छूटी जाय छे ने
ज्ञान पोताना स्वभावमां वळी जाय छे एटले निर्मळ ज्ञान–आनंदनी पर्यायो प्रगटे
पर्यायमांथी पण रागनुं कारणपणुं छूटी गयुं; तथा ते निर्मळपर्याय पोते रागनुं कार्य
पण नथी; रागने कारण बनावीने निर्मळपर्यायरूप कार्य थयुं–एम नथी. आ रीते एक
आत्मस्वभावनी प्रतीति अने अनुभूतिमां तेना सर्वे गुणोना निर्मळकार्यनी प्रतीत
भेगी समाई जाय छे.