Atmadharma magazine - Ank 275a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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२७प
A
दुःखनो उपाय धीरज
रे जीव! आ संसारमां अनेक प्रकारनां दुःखो
आवे, आकाश फाटी पडे एवी अणधारेली
प्रतिकूळताओ आवी पडे, मन मुंझाई जाय ने हृदय
गभराई जाय,–एवा प्रसंगे पण धैर्यसहित आटलुं तो
चोक्कस लक्षमां राखजे के तारुं दुःख तें ज ऊभुं कर्युं छे.
कां तो पूर्वे देव–गुरु–धर्मनी कोई विराधनाथी, कोई
साधर्मीना तिरस्कारथी, कोईना उपर खोटा कलंको
नांखवाथी, कोईने सत्कार्योमां विघ्न करवाथी–के एवा
ज कोई किलष्ट–परिणामो वडे, अने कोई मिथ्या
कल्पनाओ वडे तें तारुं आ दुःख ऊभुं कर्युं छे. ए
प्रमाणे दुःखकारणोने जाणीने अत्यंत तीव्रपणे छोड.
अने बीजुं, सन्तनी महत्त्वनी शिखामण छे
के–“कटोकटीना प्रसंगे धीरज ने शांति राखवी ते खरा
मुमुक्षुनुं कर्तव्य छे...खरो आत्मार्थी ते प्रसंगोने
लाभरूप प्रणमावे छे.” गमे तेवी परिस्थितिमांय
वर्ष: २३ अंक: १२ वार्षिक लवाजम रूा. त्रण: वीर सं. २४९२ आसो
तंत्री: जगजीवनदास बावचंद दोशी. संपादक: ब्र. हरिलाल जैन