Atmadharma magazine - Ank 275a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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सम्पादकीय
आपणा आत्मधर्मने आज–काल करतां
गुरुदेवनी छत्रछायामां आ अंकनी साथे २३ वर्ष
पूरां थाय छे, आवता अंकथी २४ मुं वर्ष शरू थशे.
गुरुदेव मंगलवाणीथी आपणने जैनधर्मनुं सत्य
स्वरूप समजावीने आत्महितनो जे मार्ग दर्शावी
रह्या छे तेनो सर्वत्र खूब प्रचार थाय ए
‘आत्मधर्मनी भावना छे. गुरुदेवनी कृपाथी अने
सौना प्रेमभर्या सहकारथी आजे आत्मधर्म वधु ने
वधु विकास साधी रह्युं छे.
पवित्र पर्युषण अने क्षमावणीपर्वना मंगल दिवसो हमणां ज गया. धर्मनी
आराधना माटे आत्माने जागृत करनारा, ने कषायना कलुष परिणामोथी छोडावीने
आत्माने शांति देनारा आ पर्वप्रसंगे जैनमात्रमां क्षमाभावनानी जे अति शीतलछाया
सर्वत्र प्रसरी जाय छे ते जिनवीरनी वीतरागीक्षमानो प्रभाव छे...के जे क्षमा जिनमार्ग
सिवाय बीजे होई शके नहि. आवा क्षमावणी प्रसंगे, आत्मधर्मना समस्त पाठको–
साधर्मीओ तथा वडीलो प्रत्ये जे कोई अपराधो थया होय, कोईनुं मन दुभायुं होय तो
अति नम्रभावे हार्दिक वात्सल्यपूर्वक सौ प्रत्ये क्षमापना चाहुं छुं. केटलाक बालबंधुओ
तरफथी क्षमावणीपत्र मळेल छे, तेमना प्रत्ये पण प्रेमपूर्वक क्षमापना.
सूचना:– हमणां आत्मधर्मना दरेक चालु अंकमां ४० पानां अपाशे. आ अंकमां
एक महत्वनी तत्त्वचर्चा तथा एक खास प्रवचन आपवानुं थयुं, तेथी भगवान
ऋषभदेवनो चालु लेख, तेमज ‘विविध वचनामृत’ आ अंके आपी शक्या नथी. “तत्त्व
चर्चा” नी जे चालु लेखमाळा हती ते “वांचको साथे वातचीत” ना विभागमां जोडी
देवामां आवी छे, एटले तत्त्वचर्चाने लगता जिज्ञासु पाठकोना प्रश्नो तथा तेना उत्तर
पण ए विभागमां अपाशे. आ सिवायनी जे चालु लेखमाळाओ छे ते थोडा वखतमां
पूरी थये बीजा नवीन सुधारावधारा करीशुं. जिज्ञासु पाठको तेमज वडीलो तरफथी
आत्मधर्मना विकास माटेना सूचनो प्रेमपूर्वक आवकारवामां आवे छे.
–जय जिनेन्द्र