: आसो : २४९२ आत्म धर्म : ३५ :
गया अंकना प्रश्नोना जवाब:–
(१) सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे
मोक्षमार्ग छे तेमां राग न आवे; केमके राग
कांई मोक्षमार्ग नथी, राग तो बंधमार्ग छे.
मोक्षमार्गमां वर्तता साधकने राग होय भले,
पण ते राग कांई मोक्षनुं कारण नथी, राग तो
बंधनुं ज कारण छे. मोक्षमार्ग माटेनो आ
महत्वनो सिद्धांत गुरुदेव आपणने खूब ज
समजावे छे. आ सिद्धांत लक्षमां राखशो तो
आगळ उपर मोटा मोटा शास्त्रोना अर्थ
समजवामां तमने खूब उपयोगी थशे.
(२) चोवीस तीर्थंकर भगवंतोमांथी
(१२) वासुपूज्य (१९) मल्लिनाथ ने
छेल्ला त्रण (२२–२३–२४) नेमिनाथ,
पार्श्वनाथ, महावीर, आ पांच तीर्थंकरो
बालब्रह्मचारी हता.
(३) नरक, तिर्यंच, मनुष्य ने देव–
ए चारे गति तो संसारनी गति छे; ते
सिवायनी पांचमी एक गति छे, तेनुं नाम
सिद्धगति अथवा मोक्षगति, आ सिद्धगति
बहु मजानी सरस छे; त्यां बधाय सिद्ध
भगवान ज रहे छे; त्यां कोई जातना राग–
द्वेष नथी, लडाई–झगडा नथी, दुःख के दुकाळ
नथी; त्यां तो बस आनंद–आनंद ने आनंद
सिद्धगतिमां जवुं कोने न गमे? आपणने
सौने गमे...गमे...बहुज गमे त्यां जवानो
मार्ग गुरुदेव आपणने देखाडी रह्या छे.
(४) (रणवधगदे) आ छ अक्षरमां
जैनधर्मना मोटा महात्मा श्री ‘गणधरदेव’
बिराजी रह्या छे; तेमने नमस्कार हो.
नवा प्रश्नो–
(१) जंगलमां एक मुनिराज बेठा हता; एक
राजा त्यां आव्यो, वंदनकर्या, अने पछी
पूछ्युं–‘प्रभो! मोक्षनो मार्ग शुं छे?’ मुनि
कांई बोल्या नहि, पण त्रण आंगळी
बतावी. ते उपरथी राजा मोक्षमार्ग समजी
गयो. बंधुओ, राजानी जेम तमे पण समजी
गया के नहि? ते लखो.
(२) बाहुबली–कुमारना बापुजीनुं नाम शुं?
(३) एक एवी नगरी छे के, ज्यां गया
पछी कोई जीव कदी पाछो आवतो नथी; अने
छतां त्यां जवानुं बधाने गमे छे.–तो ए
नगरी कई?
(४) जेम सम्मेदशिखर आपणुं महान तीर्थ
छे तेम अयोध्यानगरी पण आपणुं महान
तीर्थ छे; शा माटे? ते जाणो छो? (जवाब
ता. १० पहेलां लखो: सरनामुं आत्मधर्म