आराधना करवी एवो उपदेश छे. शुद्ध आत्माना सेवनमां रत्नत्रयनी
आराधना समाई जाय छे.
योग्य छे. रागभावथी आत्मा साध्य के साधन थतो नथी; पण अंतरमां
शुद्धआत्मामां वळेला भावथी ज आत्मा साध्य ने साधन थाय छे.
साधन पण नथी. माटे रागभावे आत्माने न सेववो, पण जे भावथी आत्मा
शुद्धज्ञानभावरूपे परिणमेलो आत्मा ते साधक, अने पूर्ण शुद्धतारूप परिणमेलो
आत्मा ते साध्य; आम साधक ने साध्य बंनेमां एक आत्मा ज नित्य सेववा
योग्य छे. वच्चे राग आवे ते सेववा योग्य नथी, ते साधनरूप नथी.
आत्मानो ज तने सहारो छे, बीजा कोईनो सहारो नथी; रागनो सहारो नथी.
शुद्धता साध्य एम न होय, अशुद्धता साधन थईने शुद्धताने साधी शके नहि.
अशुद्धतावडे अशुद्धता सधाय, शुद्धता वडे शुद्धता सधाय. साध्यभाव के
साधन राग–एम नथी.
ते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र रागने तो उल्लंघी जाय छे, पण आत्मस्वभावने
उल्लंघता नथी.
साधक भाव प्रगटे छे, माटे सन्तोए, धर्मीओए, आत्मार्थिओए शुद्ध आत्मा ज
एक सदाय सेववा योग्य छे.–आ स्वरूपनी प्राप्तिनो ने सुखी थवानो उपाय छे.