Atmadharma magazine - Ank 275a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्म धर्म : आसो : २४९२
साधके कोनी सेवा करवी?
(समयसार गा. १६ ना प्रवचनमांथी)
* साधके दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी आराधना करवी एटले परमार्थे शुद्ध आत्मानी
आराधना करवी एवो उपदेश छे. शुद्ध आत्माना सेवनमां रत्नत्रयनी
आराधना समाई जाय छे.
* आ आत्मा, जे भावथी साध्य तथा साधन थाय ते भावथी ज नित्य सेववा
योग्य छे. रागभावथी आत्मा साध्य के साधन थतो नथी; पण अंतरमां
शुद्धआत्मामां वळेला भावथी ज आत्मा साध्य ने साधन थाय छे.
* साध्य पण आत्मा, ने साधन पण आत्मा; राग ते साध्य नथी, ने राग ते
साधन पण नथी. माटे रागभावे आत्माने न सेववो, पण जे भावथी आत्मा
साध्य अने साधक थाय ते भावथी एटले के शुद्धज्ञानभावथी आत्माने सेववो.
शुद्धज्ञानभावरूपे परिणमेलो आत्मा ते साधक, अने पूर्ण शुद्धतारूप परिणमेलो
आत्मा ते साध्य; आम साधक ने साध्य बंनेमां एक आत्मा ज नित्य सेववा
योग्य छे. वच्चे राग आवे ते सेववा योग्य नथी, ते साधनरूप नथी.
* अरे जीव! तारास्वरूपने साधवामां बीजुं कोई तने साधनरूप नथी, तारा
आत्मानो ज तने सहारो छे, बीजा कोईनो सहारो नथी; रागनो सहारो नथी.
* साध्य अने साधन बंने एक जातना होय, विरुद्ध न होय. राग साधन ने
शुद्धता साध्य एम न होय, अशुद्धता साधन थईने शुद्धताने साधी शके नहि.
अशुद्धतावडे अशुद्धता सधाय, शुद्धता वडे शुद्धता सधाय. साध्यभाव के
साधनभाव बंनेमां ध्येयरूप–आश्रयरूप एक शुद्धआत्मा ज छे. साध्य आत्मा ने
साधन राग–एम नथी.
* सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ए त्रणे परमार्थे आत्मा ज छे, केमके आत्माना
स्वभावने तेओ उल्लंघता नथी, आत्माने छोडीने अन्यत्र तेओ वर्तता नथी.
ते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र रागने तो उल्लंघी जाय छे, पण आत्मस्वभावने
उल्लंघता नथी.
* रागने अने भेदने ओळंगीने पोताना एकरूप आत्माना सेवनथी ज साध्य ने
साधक भाव प्रगटे छे, माटे सन्तोए, धर्मीओए, आत्मार्थिओए शुद्ध आत्मा ज
एक सदाय सेववा योग्य छे.–आ स्वरूपनी प्राप्तिनो ने सुखी थवानो उपाय छे.