Atmadharma magazine - Ank 275a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९२ आत्म धर्म : ३३ :
खंडखंडरूप, राग साथे भेळसेळवाळुं ज अनुभवे छे; लक्षने स्वमां मूके तो एकला
ज्ञान–आकाररूप आनंदनो स्वाद आवे. ज्ञानी तो ज्ञानना भिन्न स्वादने ज देखे छे.
(१३) ज्ञानसूर्यनो जे व्यक्त अंश छे, ते अंशनी एकता अंशी एवा स्वद्रव्य
साथे न मानतां, अज्ञानी परज्ञेयो साथे एकता मानीने ज्ञेयोमां लुब्ध थाय छे,
परसन्मुख ज रहीने ज्ञानने खंडखंडरूप करी नांखे छे ने राग साथे भेळवीने
आकुळताना ज स्वादने वेदे छे. ज्ञानी तो परज्ञेयोथी ज्ञानने भिन्न करीने, सामान्य
साथे विशेषनी एकता करतो थको ज्ञाननी अनुभूतिमां आनंदनो स्वाद ल्ये छे.
(१४) जैनशासन तो तेने कहेवाय के जेमां आनंदनुं आस्वादन होय; जेमां
आकुळता होय तेने जैनशासन केम कहेवाय? रागमां तो आकुळतानो स्वाद छे, दुःख
छे, ते खरेखर जिनशासन नथी. रागनी अनुभूति ते खरेखर आत्मानी अनुभूति
नथी, ते जिनशासननी अनुभूति नथी, ते भगवाननो उपदेश नथी. स्वसन्मुख थईने
पर्याय अंतरमां अभेद थतां, सर्वे परद्रव्योथी ने परभावोथी भिन्न एकरूप शुद्ध
आत्मानी जे अनुभूति छे ते आनंदना स्वादथी भरेली छे; ते अनुभूति ज जैन शासन
छे, ते ज साचो आत्मा छे ने ते ज जिनदेवनो उपदेश छे. चोथा गुणस्थानथी आवी
अनुभूति शरू थाय छे.
(१प) ज्ञान ते आत्मा छे, ने आत्मा ते ज्ञान छे–एम तेमनी एकता छे; पण
राग ते ज्ञान नथी, ने ज्ञान ते राग नथी–एम तेमनी भिन्नता छे.–आवी ज्ञान साथे
एकता ने रागथी भिन्नताना भान वडे ज्ञानी ज्ञाननो ज स्वाद ल्ये छे. ज्ञानना
स्वादमां आकुळतानो अभाव छे ने परम शांतिनुं वेदन छे. शुद्धनयवडे जे आवुं वेदन
थयुं–तेमां जिनशासन समाय छे; ते मोक्षमार्ग छे, ते धर्म छे.
तारी सगवड खातर बीजाना प्राण हणीश मा.
तारा दोष ढांकवा बीजा पर दोष ढोळीश मा.
तारो आत्मा साधवा बीजानी मदद मागीश मा.