Atmadharma magazine - Ank 275a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्म धर्म : आसो : २४९२
शांत भावनुं वेदन जेमां थाय ते ज आत्मा छे. जेने विपरीत कह्या, अचेतन कह्या ने
अनात्मा कह्या–एवा शुभभाव ते तो दुःख अने आस्रव छे, तेना वडे मोक्ष केम सधाय?
अज्ञानी तेने धर्म कहे छे, अहीं आचार्यदेव कहे छे के ते ‘अनात्मा’ छे, दुःख छे.
(७) अरे भाई, जेमां दुःखनुं वेदन एने ते आत्मा कोण कहे? आत्माने जे
दुःख आपे तेने आत्मानुं स्वरूप केम कहेवाय? तेने जैनधर्म केम कहेवाय? ज्ञानस्वरूप
आत्मानी अनुभूति ते ज आनंदरूप छे, ते ज जैनधर्म छे, ते ज आत्मानुं स्वरूप छे.
आवा आत्मानी अनुभूतिनो उपदेश भगवाने आप्यो छे.
(८) भाई, चैतन्यनुं आराम–धाम तो स्वानुभूतिना शुद्ध भावमां छे, राग
कांई तारा आरामनुं स्थान नथी, ते तो आकुळतानुं स्थान छे. जेमां आत्माने आनंद
न आवे ते भावने आरामनुं स्थान कोण कहे? स्वानुभूति वगर शुभभाव करीने
नवमी ग्रवेयके जनारने पण आत्मानी शांतिनुं जराय वेदन न थयुं, एकलुं दुःखनुं ज
वेदन थयुं.
(९) अरे, आत्मानी स्वानुभूतिनो स्वाद, अज्ञानीए कदी जाण्यो नहि.
आनंदमूर्ति आत्मानो जे वीतरागीस्वाद, ते स्वानुभूतिमां प्रगटे छे, त्यां ते
अनुभूतिमां आत्मा ज प्रगट्यो एम कह्युं; एनुं नाम ‘सामान्यनो आविर्भाव’
कहेवाय; एने जैनशासन कहेवाय, एने स्वानुभूति कहेवाय, एने आत्मसाक्षात्कार
कहेवाय.
(१०) जेने परसन्मुखपणे एकला रागनुं वेदन छे तेने परज्ञेयनुं ज वेदन छे,
स्वज्ञेयनुं वेदन तेने नथी. स्वज्ञेयना वेदनमां तो शांति होय, परसन्मुख जोईने जे
लाभ माने छे ते पर ज्ञेयमां ज आसक्त रहे छे, ते स्वज्ञेय तरफ वळतो नथी एटले
स्वज्ञेयनी शांतिनुं वेदन तेने थतुं नथी; ते परज्ञेयना स्वादमां ज एकाकारपणे आसक्त
छे. स्वज्ञेयनो जे अतीन्द्रिय आनंदरूप स्वाद, ते तेना अनुभवमां आवतो नथी.
(एटले तेने ‘सामान्यनो तिरोभाव’ कहेवाय छे.)
(११) देव–शास्त्र ने गुरु शुं कहे छे? तेमनी आज्ञा शुं छे? के पर तरफना जे
अभूतार्थभावो तेनाथी परांङमुख थईने, तारा भूतार्थ शुद्ध स्वभावनी सन्मुख था, ने
तेनो अनुभव कर. आवी आज्ञाने जे जाणे नहि, माने नहि, ने परसन्मुखताथी लाभ
माने तो तेणे वीतरागी देव–शास्त्र–गुरुनी आज्ञाने जाणी नथी, देव–गुरु–शास्त्रनो
खरोभक्त ते थयो नथी. तारे देव–गुरु–शास्त्रनी आज्ञा मानवी होय ने तेमनो साचो
भक्त थवुं होय तो स्वसन्मुख थईने आत्मानी अनुभूति कर. स्वज्ञेयना वेदनमां
आनंदनो स्वाद छे. ए जैनशासन छे, ए जिनआज्ञा छे.
(१२) रागथी जुदा एकला ज्ञाननो स्वाद केवो छे तेने अज्ञानी जाणतो नथी
केमके परज्ञेयने जाणतां ते ते वखतना रागमां ज एकाकार थईने अनुभवे छे. अज्ञानी
लक्षनो दोर एकला परमां राखीने ज्ञानने