Atmadharma magazine - Ank 275a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९२ आत्म धर्म : ३१ :
जैन शासन
(पंदरमी वखतना पंदरमी गाथाना प्रवचनमांथी स्वानुभूतिप्रेरक पंदर बोल)
(१) पोतामां के परमां परलक्षी ज्ञानना उघाडनी जेने महत्ता छे ने
स्वानुभूतिनी महत्ता नथी तेने अनुभूतिवाळा ज्ञानीनो साचो महिमा आवशे ज नहि;
अनुभूतिनी महत्तानी तेने खबर ज नथी एटले अनुभूतिवंत ज्ञानी धर्मात्माने ते
ओळखी शकशे नहि, ने ओळख्या वगर साचो महिमा क्यांथी आवे?
(२) भगवाननी वाणीमां जे चार अनुयोग आव्या ते बधानो सार शुं? के
शुद्ध आत्मानी अनुभूति ते बधानो सार छे, ते ज जिनशासन छे, ते ज सर्व शास्त्रनो
सार छे. आवी अनुभूति वगर जैनशासनने जाण्युं न कहेवाय.
(३) जैनशासन एटले शुं? जैनशासन एटले जिननी शिखामण; जिननी
शिखामण एटले वीतरागनी शिखामण; वीतरागनी शिखामण वीतरागतानी ज होय;
ने वीतरागता शुद्ध –आत्माना अनुभवथी ज थाय. माटे–
जेणे शुद्धात्मानी अनुभूतिवडे वीतरागभाव प्रगट कर्यो तेणे ज वीतरागी
जिननी शिखामण मानी; तेणे ज जैनशासनने जाण्युं, ने ते ज साचो जैन थयो.
(४) आखा जिनशासनने एटले के जिनभगवानना सर्वे उपदेशने तारे
जाणवो होय तो तारा शुद्धआत्मानी अनुभूति कर. शुद्धआत्मानी अनुभूति ते ज
जिनशासननो सार छे. आवी स्वानुभूतिनो जेने महिमा नथी ने बहारना जाणपणानो
के शुभरागनो जेने महिमा छे, –तेमां जेने अधिकता भासे छे, तेने अंतरमां स्वानुभूति
पामेला धर्मात्मा प्रत्ये साचुं बहुमान आवशे नहि, एटले ते पोते जाणपणानी
अधिकतामां अटकीने अंतरनी स्वानुभूति करी शकशे नहि.
(प) बार अंगनुं ज्ञान स्वानुभूतिवाळा जीवने ज थाय छे. शुद्धआत्मानी
अनुभूतिथी सम्यग्दर्शन प्रगट कर्या वगर बार अंगनुं ज्ञान कोईने थाय नहि. पण
स्वानुभूतिवाळा जीवने माटे एवी कोई टेक के नियम नथी के बार अंगनुं ज्ञान तेने
होवुं ज जोईए. स्वानुभूतिनी कोई अचिन्त्य विशेषता छे, तेमां घणी गंभीरता छे.
(६) आत्माना शुद्धस्वभावने अवलंबीने प्रगटेला शांतिना वेदनरूप निर्मळ
भावने आत्मा कहीए छीए. शुभाशुभभावमां आकुळतारूप दुःखवेदन छे, ते
दुःखवेदनने आत्मा कहेता नथी, ते ‘अनात्मा’ छे. आत्माना