Atmadharma magazine - Ank 277
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : कारतक : २४९३
भगवन ऋषभदव
तेमना छेल्ला दस अवतारनी कथा
(महा पुराणना आधारे ले. ब्र. हरिलाल जैन: लेखांक सातमो)
(जिनवाणीना अंशरूपे जे कषायप्राभृत, तेना उपर
६०,००० श्लोकप्रमाण जयधवला टीका छे; तेना शरूआतना वीस
हजार श्लोक श्री वीरसेनस्वामी रचित छे; ने पछीना चालीस
हजार श्लोकनी रचनावडे श्री जिनसेनस्वामीए पोताना गुरुनुं
अधूरुं रहेलुं महान कार्य पूरुं कर्युं छे, अने त्यार पछी आ
महापुराणनी रचना पण तेमणे ज करी छे. आ रीते जयधवलानी
४०,००० श्लोकप्रमाण टीकाना रचनार एवा भगवत्
जिनसेनस्वामीनी रचनाने आधारे आ ऋषभकथानुं आलेखन
थई रह्युं छे. सम्यक्त्व केम पमाय? ते वखतना जीवनां परिणाम
केवा होय? वगेरे अनेक सिद्धान्तिक रहस्यो आमां भर्या छे.)
आपणा कथानायक भगवान ऋषभदेवनो जीव महाबलराजाना भवमां जैन धर्मना
संस्कार पाम्यो; पछी ललितांग–देव थयो; वज्रजंघना भवमां मुनिओने आहारदान दीधुं;
भोगभूमिना भवमां ‘प्रीतिकर’ अने ‘प्रीतिदेव’ ए बे मुनिवरोना उपदेशथी अपूर्व
सम्यक्त्वधर्म प्रगट कर्यो; श्रीधरदेवना भवमां मंत्रीना जीवने नरकमां प्रतिबोधीने,
सम्यग्दर्शन पमाडयुं; पछी विदेहमां सुविधिराजा थई श्रावकधर्म पाळी अंतसमये मुनि थया;
ने समाधिपूर्वक देह छोडी, अत्यारे स्वर्गमां अच्युतेन्द्रपणे बिराजी रह्या छे; हवे त्यांथी
मनुष्यलोकमां अवतरवानी तैयारी छे; अहीं सुधी आपणी कथा पहोंची छे. हवे कथा आगळ चाले
छे; तेमां, आपणा कथानायक मनुष्यलोकमां क्यां अवतरे छे ने त्यां शुं करे छे–ते आपणे जोईए.
[८]
पूर्वनो त्रीजो भव: वज्रनाभि चक्रवर्ती, मुनिधर्मनुं पालन अने तीर्थंकरप्रकृति
भगवान ऋषभदेवनो आत्मा अच्युतईन्द्र स्वर्गथी च्युत थईने, अत्यंत शोभायमान
एवा जंबुद्वीपना पूर्वविदेहक्षेत्रमां पुष्कलावती देशनी पुंडरीकिणी नगरीमां अवतर्यो,–
वज्रनाभी एनुं नाम; राजा वज्रसेन तीर्थंकर तेना पिता, अने श्रीकान्ताराणी