Atmadharma magazine - Ank 277
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3 of 46

background image
आ नुतन वर्षना मंगल प्रारंभे सौथी पहेलां पंचपरमेष्ठी भगवंतोने,
रत्नत्रयने आत्मसाधक सन्तोने अने जिनवाणी–माताजीने परम भक्तिपूर्वक वंदना
करीए छीए.
नुतनवर्षनी साथे आपणुं आत्मधर्म–मासिक पण पू. गुरुदेवनी मंगल
छत्रछायामां २३ वर्ष पूर्ण करीने २४ मा वर्षमां प्रवेशी रह्युं छे. गुरुदेव आपणने जे
आत्महितकारी बोध आपी रह्या छे ते बोध दूरदूरना जिज्ञासुओ सुधी पहोंचाडवामां
आत्मधर्मनो केटलो फाळो छे ते सौ जाणे छे, एटले ज सर्वे जिज्ञासुओए ‘आत्मधर्म’
ने पोतानुं ज समजीने प्रेमथी आदरपूर्वक अपनाव्युं छे. आत्मधर्मे हंमेशा पोताना
उच्च आदर्शो ने उच्च प्रणाली जाळवी राख्यां छे. सन्तजनोना आशीषथी ने
साधर्मीओना सहकारथी आत्मधर्म हजी वधु विकसे एवी भावना छे.
गतवर्षनी नवीनतामां खास करीने ऋषभदेव भगवाननुं चरित्र, वांचको साथे
वातचीतनो विभाग अने बालविभाग–ए त्रणेमां जिज्ञासुओनुं विशेष आकर्षण रह्युं.
बालविभागमां आनंदपूर्वक बे हजार जेटला बाळको (खरेखर बाळको ज नहि पण
मोटा–नाना सौ) उत्साहथी भाग लई रह्या छे, अने आ बालविभागने लगता
खर्चनो भार पण बाळकोए ज उपाडी लीधो छे. ए विशेष सन्तोषनी वात छे.
जैनसमाजना बधा पत्रोमां आत्मधर्मनुं अने तेना बालविभागनुं सर्वोच्च स्थान छे.
‘आत्मधर्म’ नो उदे्श–आत्मार्थीतानुं पोषण वात्सल्यनो विस्तार अने
देवगुरुधर्मनी सेवा; तेनी साथे हवे ‘बाळकोमां जैनधर्मना संस्कारोनुं सींचन’ ए चोथी
वात पण उमेराय छे. प्रेमभर्या सहकार बदल सौनो आभार मानुं छुं.
मारा जीवनमां पू. गुरुदेवनो परम उपकार छे. आज २४ वर्षथी गुरुदेवनी
अत्यंत नीकट चरणछायामां निरंतर रहेवाना सुयोगथी ने तेमनी कृपाथी मारा
जीवनमां जे महान लाभ थयो छे, तथा तेमना प्रवचनो झीलीने ग्रंथारूढ करवानो
जे सुयोग मने मळ्‌यो छे तेने हुं मारा जीवननुं मोटुं सद्भाग्य समजुं छुं. ने आ ज
रीते गुरुदेवनी सेवना करतां करतां आत्महितने साधुं एवी नुतनवर्षना
मंगलप्रारंभे मारी प्रार्थना छे. तथा समस्त साधर्मीजनो प्रत्ये पण धार्मिक
वात्सल्य भरेला अभिनन्दननी साथे साथे एवी भावना भावुं छुं के–
हिलमिल कर सब बंधु चालो...........आत्मधर्म आराधीए......
देवगुरुना आदर्श लईने...........जिनशासन शोभावीए......
–ब्र. ह. जैन