Atmadharma magazine - Ank 277
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९३ आत्मधर्म : ३१ :
अस्तित्ववाळां छे. ने दरेक जीव पोतपोताना करेला कर्मअनुसार एक गतिमांथी बीजी
गतिमां पोतानी मेळे जाय छे ने सुख–दुःखने भोगवे छे. आ रीते जीव पोते ज पोताना
सुखदुःखने करे छे, कोई ईश्वर तेने दुःख के सुख आपता नथी. ईश्वर आखा जगतने जाणे छे
खरा पण जगतनुं कांई करता नथी.
बंधुओ, जो आपणे पण परमेश्वर थवुं होय एटले के मुक्त थवुं होय, तो आपणे
ज्ञानस्वरूपने ओळखवुं जोईए ने परना कर्तृत्वनी बुद्धि छोडवी जोईए. (जेम आपणा कर्ता
बीजा नथी, तेम बीजाना कर्ता आपणे नथी.)
अहीं एक प्रसंग याद आवी जाय छे–बनारसमां एकवार एक जैन–पंडितजीए
पोतानी आठ–दश वर्षनी बाळकीने पूछयुं–बेटी! तुझे किसने बनाई? बाळकीए जवाब
आप्यो के भगवानने मुझे बनाई!–ए सांभळ्‌युं ने पंडितजी चोंकी ऊठया. अरे! जैनबाळकने
आ संस्कार!! अने पछी तो जैनधर्मना मूळ संस्कारमां कुठारघात समान एवा संस्कारो
बाळकोमां न पडे ते माटे तेमणे पोतानी लडकीने स्कूल छोडावीने घरे ज अभ्यास कराव्यो.
जोके आजे पण हजी ए स्थितिमां बहु झाझो फेर नथी. छतां पू. गुरुदेवना प्रतापे
आजे जैनत्व जागी ऊठयुं छे, जैन बाळको पण जागवा मांडया छे; ने आपणे बालविभाग
द्वारा बाळकोमां नानपणथी ज साचा धार्मिक संस्कारो रेडवानी झुंबेश चलावी रह्या छीए.
जेथी आ कळियुगना धर्मविरुद्ध संस्कारोथी आपणां बाळको नानपणथी ज बची शके, ने
जैनधर्मना मूळभूत संस्कारनुं तेनामां सींचन थाय. आ नानकडा छतां अत्यंत आवश्यक
कार्यमां जो सौ साधर्मीओने वडीलो उत्साहथी आशीर्वाद अने सहकार आपे तो आपणा
आजनां बालुडां मोटा थशे त्यारे जैनधर्मना संस्कारवडे जैनशासनने जरूर शोभावशे.
जैन बाळकोने धर्मना संस्कारो आपवा माटे जैनसमाजना बधा फिरका केवा एकमत
छे, अने ते बधामां पण आत्मधर्मना बालविभागनुं केवुं अग्रस्थान छे–ते आपणने
‘स्थानकवासी जैन’ पत्रना संपादकजीना नीचेना शब्दोथी ख्यालमां आवशे. तेओ लखे छे के–”
सोनगढथी प्रगट थतां आत्मधर्म–मासिकमां बालविभाग शरू करीने घणुं सरल
मासिक बनाववामां आवेल छे. पुलरूपे १६०० जेटला बालसभ्यो थया छे. बालविभागमां
सारूं एवुं दान पण मळी रह्युं छे. देरावासी समाजमां पण एक स्वतंत्र मासिक कुमारो माटे
प्रगट थाय छे, तथा सुघोषामां पण बालविभाग आपवामां आवे छे. दरेकमां बाळको–कुमारो
सारो रस लईने धर्मनी वातो जाणता थया छे...आपणा सन्तानोने धर्मवान बनाववा होय
खरूं ज छे के बाळकोने धर्मना संस्कार आपवामां जरा पण उपेक्षा करवा जेवी नथी.
स्कूलनुं विशेष भणतर एने मळे के न मळे पण धार्मिक संस्कार तो तेने जरूर मळवा ज
जोईए–एवुं तेनुं महत्व स्वीकारीने बाळकोने धर्म संस्कार आपवा माटे सौए जागृत थवानी
जरूर छे, ने तेवी प्रवृत्तिओमां सौए उत्साहथी साथ आपवा जेवुं छे. जय जिनेन्द्र