: कारतक : २४९३ आत्मधर्म : ३३ :
पण नहीं! विदेहक्षेत्रमां तो सीमंधर भगवान वगेरे तीर्थंकर भगवान बिराजी
रह्या छे.– एम याद करीने तेओ ‘पोन्नूर’ पासे बेठा बेठा ध्यानमां सीमंधर
भगवानना समवसरणनुं चिंतन करता हता: ‘त्यां सर्वज्ञदेवनी वाणीना धोध
छूटता हशे, गणधरो बिराजता हशे! घणा मुनिवरो आत्मध्यान करी करीने
केवळज्ञान पामता हशे! अहा! केवां हशे ए द्रश्यो!’
अहीं कुंदकुंदमुनिराज सीमंधरनाथनुं ध्यान धरे छे, त्यां भगवानना
समवसरणमां एनी खबर पडी. त्यांथी बे देवो भक्तिपूर्वक कुंदकुंदस्वामी पासे
आव्या. तेमनी साथे आकाशमां विचरता विचरता कुंदकुंदस्वामी विदेहक्षेत्रमां
सीमंधर भगवानना दर्शन करवा माटे चाल्या..अहा, भरतक्षेत्रना मुनिराज
विदेहक्षेत्रना तीर्थंकरने भेटवा आकाशमार्गे चाल्या.. भरतना मुनिराज
देहसहित विदेहनी यात्रा करवा चाल्या...केवो अद्भुत प्रसंग! (पछी शुं
बन्युं? ........ते आवता अंकमां)
साकरना भगवान!
आ आसो सुद पूनमे गुरुदेवे स्वप्नमां एक भगवान
देख्या...भगवान तो खरा पण अदभुत ने आश्चर्यकारी! अने वळी ए
शेना बनेला खबर छे? स्फटिक जेवा धोळा मजाना साकरना अखंड
गांगडामांथी कोतरेला ए भगवान खड्गासन हता. साकरना
भगवान एटले जाणे मीठा अमृतरसथी भरेला, अतीन्द्रिय आनंदथी
भरेला; ने कारीगरी तो एवी के जाणे शाश्वती रत्ननी मूर्ति होय!
अहो, शरदपुनमना ए स्वप्ननो मीठो स्वाद...एनो मधुर आह्लाद!
गुरुदेव ए जिनप्रतिमाना आनंदकारी दर्शननुं वर्णन करतां
उल्लासपूर्वक कहे छे के ए प्रतिमानी अद्भुततानुं वर्णन हुं वचनथी
कही शकतो नथी. आम दिनरात जिनगुणचिन्तनमां मग्न गुरुदेव
स्वप्नमांय अवारनवार जिनदेवने देखे छे. स्वप्नमां ए
अमृतस्वादमय साकरना जिनप्रतिमानुं दर्शन कोई मीठा–मधुर
प्रभावशाळी फळनी आगाही सूचवे छे. गुरुदेव आपणने पण
जिनमार्गना अमृतनो मधुर स्वाद चखाडो.