Atmadharma magazine - Ank 277
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९३ आत्मधर्म : ३प :
गया अंकना प्रश्नोना जवाब
(१) जंगलमां एक मुनिराज बेठा हता; एक राजा त्यां आव्यो. वंदन कर्या, अने पछी पूछयुं
‘प्रभो? मोक्षनोमार्ग शुं छे?’ मुनि कांई बोल्या नहि पण त्रण आंगळी बतावी, ते उपरथी राजा
समजी गयो के त्रण एटले सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्चारित्र ए त्रण रत्न, ते मोक्षमार्ग छे.
अने मुनि कांई बोल्या नहि ते एम सूचवे छे के ते मोक्षमार्ग विकल्प वगरनो छे.–हवे तो राजानी
जेम तमे पण समजी गया ने!
(२) बाहुबलीकुमारना बापुजीनुं नाम ऋषभदेव; भगवान ऋषभदेवने एकसोएक पुत्रो;
सौथी मोटा भरत, ने सौथी नाना बाहुबली; ए बधाय मोक्षमां गया.
(३) सिद्धनगरी अथवा मोक्षनगरी एवी छे के त्यां गया पछी कोई जीव कदी पाछो आवतो
नथी; अने छतां त्यां जवानुं बधाने गमे छे.
(४) जेम सम्मेदशिखर ते तीर्थंकरोना मोक्षनुं शाश्वत धाम छे तेम अयोध्यानगरी ते
तीर्थंकरोना जन्मनुं शाश्वत धाम छे, तेथी ते पण आपणुं महान तीर्थ छे. बंने तीर्थनी नीचे (मूळ
भूमिमां) शाश्वतो रत्ननो स्वस्तिक छे. आदिनाथ, अजितनाथ, अभिनंदन, सुमतिनाथ, ने
अनंतनाथ–ए पांच तीर्थंकरो अयोध्यामां जन्म्या छे. ते उपरांत भरतचक्रवर्ती रामचंद्रजी वगेरे
घणा महापुरुषो अयोध्यामां थया छे. ते तीर्थने अने ते महापुरुषोने नमस्कार.
(१) करनेवाला कोईका नहीं, (३) ‘अनंत’ मां जे वसे छे,
देखनेवाला सबका. अनंतगुणनो पिंड छे,
देहमें रहता, देह नहीं. अयोध्यामां जन्म्या छे,
दरिया है आनंदका. पालेजमां बिराजे छे;
अढी अक्षरका नाम है, पांच अक्षरनुं नाम छे,
पण अनंतगुणका धाम है.......ए कोण? ने चौद नंबरनो देव छे.......ए कोण?
(२) एक भगवान एवा (४) आ वर्षे फागण सुद चौदशे गुरुदेव
के भारे जोवा जेवा! क्यां विचरता हशे?
चार अक्षरनुं नाम छे,
यात्रानुं ए धाम छे.
एनो पहेलो अक्षर आपणने बहु गमे;
छेल्ला त्रण अक्षरमां एक मोटुं शहेर वसे–ए कोण?
(बालविभागना बधा सभ्योए जवाब लखवा जोईए. जवाब ता. पांच पहेलां नीचेना सरनामे
लखो: आत्मधर्म बालविभाग, सोनगढ. (सौराष्ट्र)