Atmadharma magazine - Ank 278
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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२७८
आत्मार्थी होय ते तो पोतानी प्रभुता सांभळतां
उल्लसी जाय के वाह! मारा चैतन्यनी प्रभुतामां
विकल्पने अवकाश ज क्यां छे? विकल्प तरफनो उत्साह
तूटीने स्वभाव तरफ तेनुं वीर्य ऊछळे छे; प्रभुता
तरफना पुरुषार्थनो उत्साह प्रगट करीने ते विकल्पथी
िन् न्त्त् , न् ऊं.ऊं
ऊतरीने अतीन्द्रिय – सुखनो ताग ल्ये छे. जेम पुत्रने
देखतां अतिशय हेतने लीधे तेनी माताने दूधनी धारा
छूटे, तेम पोतानी प्रभुतानो जेने पूरो प्रेम छे तेने तेनी
वात सांभळतां हेत ऊभराय छे ने अंतरमांथी चैतन्यना
आनंदरसनी धारा छूटे छे, रोमरोम उल्लसे छे एटले के
सर्वे गुणोमां प्रदेशेप्रदेशे अनुभवरसनी धारा उल्लसे छे.