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आत्मार्थी होय ते तो पोतानी प्रभुता सांभळतां
उल्लसी जाय के वाह! मारा चैतन्यनी प्रभुतामां
विकल्पने अवकाश ज क्यां छे? विकल्प तरफनो उत्साह
तूटीने स्वभाव तरफ तेनुं वीर्य ऊछळे छे; प्रभुता
तरफना पुरुषार्थनो उत्साह प्रगट करीने ते विकल्पथी
िभन्न चैतन्यतत्त्वने अनुभवे छे, चैतन्यमां ऊंडो.ऊंडो
ऊतरीने अतीन्द्रिय – सुखनो ताग ल्ये छे. जेम पुत्रने
देखतां अतिशय हेतने लीधे तेनी माताने दूधनी धारा
छूटे, तेम पोतानी प्रभुतानो जेने पूरो प्रेम छे तेने तेनी
वात सांभळतां हेत ऊभराय छे ने अंतरमांथी चैतन्यना
आनंदरसनी धारा छूटे छे, रोमरोम उल्लसे छे एटले के
सर्वे गुणोमां प्रदेशेप्रदेशे अनुभवरसनी धारा उल्लसे छे.
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