Atmadharma magazine - Ank 278
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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सर्वज्ञदेवे अने कुंदकुंदाचार्यादि दिगंबर संतोए कहेलुं जे परम सत्य
अध्यात्मतत्त्व अत्यारे प्रसिद्धिमां आवी रह्युं छे, ने जैनसमाजमां अत्यारे जे
स्थिति वर्ती रही छे, ते उपरथी गद्गद् हृदये गुरुदेवे प्रवचनमां कह्युं के अरे, शुं
कहीए? आ तो भगवान सीमंधर परमात्मा जे सत्य कही रह्या छे ते ज
सत्यनो प्रवाह अहीं आव्यो छे. आ तो भूला पड्या एटले अहीं आवी गया
(अहीं भक्तो कहे छे के अमारा महा भाग्य हता तेथी सत्यमार्ग बताववा
आप अहीं आव्या ने अमने आवुं परम सत्य प्राप्त थयुं.) गुरुदेव कहे छे–
अत्यारे मुनिपणुं नहि, क्षुल्लकपणुं नहि, बहारमां विशेष त्याग न देखाय
एटले लोकोने अहींनी वात साधारण लागे छे, पण बापु! आ तो सर्वज्ञ
परमात्मा पासेथी आवेलो प्रवाह छे. सर्वज्ञ परमात्मा जे कहे छे तेमां ने आ
वातमां कांई फेर नथी. आत्मानुं परमार्थस्वरूप देखाडवानी समयसारनी शैलि
कोई अलौकिक छे. अहींना लोकोना भाग्ये महा निधान आवी गया छे. जे
आवा निधानने ठुकरावशे ते पस्ताशे. आ तो महाभाग्ये आवो अवसर मळ्‌यो
छे, ते चूकवा जेवो नथी. बापु! अत्यारे जगतना कोलाहलमां रोकावा जेवुं
नथी, वीररस प्रगट करीने समभावी आत्माने साधी ले.