Atmadharma magazine - Ank 278
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९३ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक लवाजम वीर सं. २४९३
त्रण रूपिया मागशर
वर्ष : २४, अंक : २
मुमुक्षुने स्वतत्त्वने देखवानी शूरवीरता चडी जाय–एवो
अद्भुत महिमा संभळावतां गुरुदेव वारंवार कहे छे के–
स्वतत्त्वना अवलोकनथी आनंदनो अनुभव थाय छे. पोते
पोताने देखवामां जे महान आनंद छे, तेनी जगतने कल्पना पण
नथी, ने बाह्य वस्तुने जोवामां आनंद माने छे, पण त्यां तो
आकुळतानुं दुःख छे. सुखनुं धाम तो स्वमां छे, तेना अवलोकनथी ज
आनंद छे.
रे जीव! एक वार स्वतत्त्वने तो देख. बहारमां मरण जेटली
प्रतिकूळता आवे तो य तेनी दरकार छोडीने तारा स्वतत्त्वने अंदरमां
देख. स्वतत्त्वने देखतां निजानंदनी मस्तीमां तुं एवो मस्त थई जईश
के जगतमां बहारनी कांई महत्ता तने नहि रहे. बधा रस छूटीने
चैतन्यना शांतरसमां ज तने मग्नता थशे. चैतन्य–आराममां,
आनंदना बागमां तुं केलि करीश. शूरवीर थईने स्वतत्त्वने देख.