Atmadharma magazine - Ank 279
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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२७९
भूतार्थ स्वभावथी विमुख परिणाम ते संसार.
भूतार्थ स्वभावनी सन्मुख परिणाम ते मोक्षमार्ग.
भूतार्थरूप आत्मस्वभावने नहि जाणनारा जीवोने
तेनुं स्वरूप समजाववा आचार्यभगवंतो व्यवहारद्वारा ते
परमार्थनो उपदेश आपे छे. पण तेनो आशय समजीने जे
परमार्थस्वभावनी सन्मुख थाय ते ज परमार्थने समजे छे, ने
तेने ज साची देशना परिणमे छे एटले के मोक्षमार्ग थाय छे.
पण जे जीव व्यवहारउपदेशने ज परमार्थ मानीने ते
व्यवहारमां ज अटकी जाय छे ते जीव परमार्थस्वरूपने समजी
शकतो नथी, एटले देशनानो जे आशय हतो (–परमार्थ–
स्वरूपनी सन्मुख थवानो–) –तेने ते समज्यो नथी; तेथी
तेना परिणाम परमार्थस्वरूपथी विमुख ज रह्या;
परमार्थस्वरूपथी विमुख परिणाम ते संसार ज छे.
(पुरुषार्थ सिद्धिउपायना प्रवचनमांथी)
तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी * संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९३ पोष (लवाजम : त्रण रूपिया) वर्ष २४ : अंक ३