परमार्थनो उपदेश आपे छे. पण तेनो आशय समजीने जे
परमार्थस्वभावनी सन्मुख थाय ते ज परमार्थने समजे छे, ने
तेने ज साची देशना परिणमे छे एटले के मोक्षमार्ग थाय छे.
शकतो नथी, एटले देशनानो जे आशय हतो (–परमार्थ–
स्वरूपनी सन्मुख थवानो–) –तेने ते समज्यो नथी; तेथी
तेना परिणाम परमार्थस्वरूपथी विमुख ज रह्या;
परमार्थस्वरूपथी विमुख परिणाम ते संसार ज छे.
वीर सं. २४९३ पोष (लवाजम : त्रण रूपिया) वर्ष २४ : अंक ३