धरावे छे,–एटले तो प्रसिद्ध छे के ‘साचुं सगपण साधर्मीतणुं.’
एनी तुलनामां आवे एवो कोई संबंध होय तो ते एक ज छे–गुरु
अने शिष्यनो; –परंतु गुरु–शिष्यनो आ संबंध पण अंते तो
साधर्मीना सगपणमां ज समाय छे, केमके एक ज धर्मने
माननाराओमां जे मोटा ते गुरु, ने नानो ते शिष्य. एटले ‘साचुं
सगपण साधर्मीतणुं’–एनी सौथी उत्कृष्टता छे.
जिनशासननी छायामां रहेनारा, ने एक ज देव गुरु धर्मने
उपासनाराओमां धार्मिकभावना वडे परस्पर जे बंधुत्वनुं निर्दोष
वात्सल्य वर्ततुं होय छे, अने ‘आ मारो साधर्मी भाई–बहेन के
माता छे’ एवुं कहेतां एना अंतरमां जे निर्दोष भावना अने धार्मिक
गौरव वर्ते छे–तेनी तुलना जगतनो एकेय संबंध करी शके
तेम नथी.
संबंधथी मात्र धार्मिकभावनानी पुष्टि सिवाय बीजी कोई आशा के
अभिलाषा होती नथी. मने जे धर्म वहालो लाग्यो ते ज धर्म मारा
साधर्मीने वहालो लाग्यो, एटले तेणे मारी धर्मभावनाने पुष्ट
करी...ने एनी धर्मभावनाने हुं पुष्ट करुं. –आम अरस्परस
धर्मपुष्टिनी निर्दोष भावना वडे शोभतुं धर्मवात्सल्य जगतमां
जयवंत हो.
लेख अहीं रजु थाय छे. समस्त साधर्मी बंधुओ पण आ संबंधमां
पोताना उत्तम विचारो लखी मोकले एवुं हार्दिक निमंत्रण छे.
वात्सल्यपोषक उत्तम विचारो अहीं रजु थता रहेशे.)