: पोष : २४९३ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक लवाजम वी. सं. २४९३
त्रण रूपिया पोष
* वर्ष २४ : अंक ३ *
चेतना वगेरे स्वगुणनुं जे पुर–तेमां जे सुए तेने पुरुष कहे छे.
निजगुणनी चेतनानो स्वामी थईने तेना आनंदने जे आत्मा भोगवे छे ते ज
स्वप्रयोजनने साधनार पुरुषार्थी छे. जे जीव रागमां लीन थईने स्वगुणने भूले
छे, ते स्वप्रयोजनरूप अर्थने साधी शकतो नथी तेथी तेने खरेखर पुरुष कहेता
नथी. ‘पुरुष’ पणुं ए कांई देहमां नथी पण चैतन्य–परिणतिरूप निजपुरनो
स्वामी थईने तेमां एकत्वपणे परिणमे ते आत्माने ज अहीं पुरुष कह्यो छे; ने
ते पुरुष सम्यक्त्वादि उपाय वडे पोताना अर्थने–प्रयोजनने सिद्ध करे छे,–तेनी
आ वात छे, एटले के पुरुषना अर्थनी सिद्धिना उपायनुं आ वर्णन छे.
‘अजित’नाथनी स्तुति करतां भक्त कहे छे के हे नाथ! रागद्वेषने आपे
जीती लीधा, राग–द्वेषवडे आप न जीताया–तेथी आप खरा अजित छो, आप
खरा पुरुषार्थवान–पुरुष छो...परंतु रागवडे जे जीव जीताई जाय–हारी जाय तेने
पुरुष कोण कहे? निजगुणना उपभोगरूप स्वगुणनी शुद्धपरिणतिनो स्वामी
थईने वर्तवाने बदले ते तो रागनो दास थईने रह्यो, –एने पुरुष कोण कहे?
प्रभो! तारी सुवानी सोड्य तो अनंतगुणनी शुद्धचेतनामां छे. निजगुणना
निर्मळ पुरमां जे सुए ते पुरुष छे. ए ज पोताना साचा प्रयोजनरूप अर्थने
साधी शके छे. पुरुषना स्वप्रयोजनरूप अर्थनी सिद्धिनो जे उपाय ते
‘पुरुषार्थसिद्धिउपाय’ छे; रत्नत्रय ते ज पुरुषना अर्थनी सिद्धिनो उपाय छे,
एनुं वर्णन अमृतचंद्रस्वामीए पुरुषार्थसिद्धिउपायमां कर्युं छे. एवा उपाय वडे जे
पोताना प्रयोजनने साधे ते ज साचो पुरुष छे.
(पुरुषार्थ सिद्धिउपायना प्रवचनमांथी)