: २ : आत्मधर्म : पोष : २४९३
आत्म – प्रकाश
पू. गुरुदेवने अत्यंत प्रिय अने आत्मअनुभवनी खास
प्रेरक एवी ४७ आत्मशक्तिओ उपरना प्रवचनो “आत्मवैभव”
नामना पुस्तकरूपे छपाई रह्या छे. तेमांथी एक प्रकरणनो थोडोक
नमूनो अहीं आपीए छीए–जे वांचीने सौने आनंद थशे.
आ ज्ञानस्वरूप आत्मामां एक प्रकाश शक्ति छे, आ शक्तिना बळथी आत्मा
परनी सहाय वगर–राग वगर पोते पोताने स्पष्ट प्रत्यक्ष प्रकाशे छे ने स्वानुभव करे
छे. आ शक्तिनो अचिंत्य महिमा छे.
ज्यारे जे शक्ति आवे त्यारे तेनां गाणां गवाय. बाकी तो दरेक शक्ति आखा
आत्माने प्रसिद्ध करनारी छे; दरेक शक्ति पोताना पूर्ण सामर्थ्यथी भरेली छे ने
विकारना अभावरूप छे. एक शक्तिने जुदी पाडीने तेनो आश्रय करी शकाय नहि.
शक्ति अने शक्तिमान जुदा नथी, गुण अने गुणी जुदा नथी, एटले द्रव्यनी शक्तिनुं के
गुणनुं स्वरूप ओळखतां अनंतधर्मसंपन्न आखुं द्रव्य ओळखाई जाय छे, ने तेनी
प्रतीत वडे सम्यग्दर्शन थाय छे. एमां क््यांय वच्चे रागनुं के निमित्तनुं अवलंबन नथी.
तेना अवलंबन वगर आत्मा पोते ज पोताने स्पष्ट एटले के प्रत्यक्ष प्रकाशे छे एवो
तेनो प्रकाशस्वभाव छे.
आमां बे वात आवी–एक तो स्वानुभवमां आत्मा पोते पोताने स्पष्ट प्रकाशे
छे अने ते स्वानुभव स्वयं प्रकाशमान छे, तेमां आत्मा सिवाय बीजा कोईनो हाथ
नथी. आवा स्वसंवेदननी ताकातवाळो आत्मा छे.
कोई कहे के आत्मा न जणाय?
तो अहीं कहे छे के भाई, आत्मा पोते पोताने स्वानुभवमां प्रत्यक्ष जणाय
एवो तो एनो स्वभाव ज छे, अने तेमां कोई बीजानी जरूर न पडे एवो स्वयं