Atmadharma magazine - Ank 279
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९३ आत्मधर्म : १७ :
भगवन ऋषभदव
तेमना दशअवतारनी आनंदकारी कथा
भगवत्जिनसेनस्वामी रचित महापुराणना आधारे: ले
ब्र. हरिलाल जैन
[लेखांक नवमो]
अयोध्यामां ऋषभ–अवतार
आ जंबुद्वीपमां दक्षिणे भरतक्षेत्र छे; तेमां वच्चे विजयार्द्धपर्वत छे; ते पर्वतनी
दक्षिणे वचमां आर्यखंड छे. तेमां त्रीजा आराना पाछला भागमां, ज्यारे भोगभूमि
मटीने कर्मभूमिनी व्यवस्था थवा मांडी त्यारे, प्रजानुं पालन करनार छेल्ला (१४मा)
कुलकर
नाभिराजा थया. तेमने मरुदेवी नामनी राणी हती, ते रूप–गुणमां ईन्द्राणी
समान हती; जगतनी उत्तम अने मंगल स्त्रीओमां श्रेष्ठ हती, गुणरत्नोनी खाण हती,
पवित्र सरस्वती देवी हती, अने वगर भण्ये पंडिता हती, ईन्द्रद्वारा प्रेरित उत्तम देवोए
महान विभूति सहित ते मरुदेवीनो विवाहोत्सव कर्यो हतो. नाभिराजा अने मरुदेवी
ईन्द्र–ईन्द्राणी समान शोभता हता. संसारमां तेओ सौथी अधिक पुण्यवान हता, केमके
स्वयंभू भगवान ऋषभदेव जेमना पुत्र थशे तेमना समान बीजुं कोण होई शके?
आवा मरुदेवी अने नाभिराजा जे भूमिमां रहेता हता ते भूमिमां ज्यारे
कल्पवृक्षोनो अभाव थयो त्यारे तेमना पुण्यप्रतापे ईन्द्रे त्यां एक सुंदर नगरीनी रचना
करी. देवोए रचेली ए नगरीनी अद्भुत शोभानी शी वात! ए नगरीनुं नाम
अयोध्या. कोई शत्रु तेनी सामे युद्ध करी शकता नहि तेथी ते खरेखर ‘
अयोध्या’ हती.
[अरिभिः यौद्धं न शक्या–अयोध्या] ते नगरीनां बीजां नामो साकेतपुरी, सुकोशला
तथा विनिता हतां. ते अयोध्यानगरीनी वच्चे देवोए सुवर्णनो राजमहेल बनाव्यो; ने
उत्तम मुहूर्ते ते नगरीनुं वास्तु करीने तेमां नाभिराजा–मरुदेवी वगेरेने आनंदपूर्वक
वसाव्या. ‘आ बंनेने त्यां सर्वज्ञ–ऋषभदेव पुत्र तरीके अवतरशे’ एम विचारीने ईन्द्रे
तेमनो राज्याभिषेक करीने, महा पूजन–सन्मान कर्युं.