: २६ : आत्मधर्म : पोष : २४९३
धर्मात्मानी अनुभूतिनुं
आनंदकारी वर्णन
[समयसार गा. १४३ उपरना प्रवचनमांथी]
अहो, निर्विकल्प अनुभूतिनो महिमा ऊंडो अने गंभीर छे. अहीं
ए अनुभवदशानुं कोई अलौकिक वर्णन कर्युं छे. चोथा गुणस्थानवाळा
सम्यग्द्रष्टिनी अनुभवदशाने ठेठ केवळीभगवाननी जात साथे सरखावी छे.
धर्मीनी अनुभवदशा शुं छे ने निर्विकल्प अनुभव वखतनी स्थिति केवी
छे–ए समजे तो पोताने अंतरमां भेदज्ञान थाय ने आत्मानो पत्तो लागे.
‘व्यवहारथी मारो आत्मा बद्ध छे’ एवो शुभ विकल्प अथवा ‘निश्चयथी मारो
आत्मा अबद्ध छे’ एवो शुभविकल्प, –ए बंने विकल्प ते राग छे, ते रागना पक्षमां
अटके त्यांसुधी आत्मानो अनुभव के सम्यग्दर्शन थतुं नथी.
तो हवे ते बंने नयोना पक्षथी पार आत्मानी साक्षात् अनुभूति केम थाय?
तेनी जेने जिज्ञासा छे एवो शिष्य कया प्रकारे पक्षातिक्रान्त थाय छे तेनुं आ वर्णन छे.
अंतरनी खास प्रयोजनरूप वात छे.
विकल्पनो पक्ष, –पछी ते व्यवहारनो हो के निश्चयनो हो, पण विकल्प ते तो
अशांत चित्त छे, तेमां चैतन्यनी शांतिनुं वेदन नथी. जे जीव पक्षथी पार थईने
चैतन्यस्वरूपमां वसे छे–तेमां उपयोगने एकाग्र करे छे ते समस्त विकल्पजाळथी छूटीने
शांतचित्तवडे साक्षात् अमृतने पीवे छे, अतीन्द्रिय आनंदने अनुभवे छे.
अहीं (आ १४३ मी गाथामां) श्रुतज्ञानीजीव स्वानुभूति वखते केवो
पक्षातिक्रान्त छे ते वात केवळी साथे सरखावीने समजावे छे: स्वानुभूतिमां वर्तता
जीवने बंने नयोनुं मात्र ज्ञातापणुं छे, पण नयना विकल्पो नथी; एना ज्ञाननो उत्साह
स्वभावना अनुभव तरफ वळ्यो छे एटले विकल्पना ग्रहणनो उत्साह छूटी गयो छे;
ज्ञान ते विकल्पने ओळंगीने अंदर स्वभाव तरफ उत्सुक थयुं छे. छ बोलथी केवळज्ञान
साथे श्रुतज्ञानीना अनुभवने सरखावीने पक्षातिक्रान्त अनुभवनुं स्वरूप समजावशे.