Atmadharma magazine - Ank 279
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९३ आत्मधर्म : २प :
हती, आखा देशमां कोई उपद्रव न हतो, समस्त प्रजा कल्याणरूप हती. अहा, ए
अभिषेके जगतना प्राणीओनुं कोई कल्याण बाकी राख्युं न हतुं. चारणऋद्धिधारी
मुनिवरो आदरपूर्वक एकाग्रचिते ए जिनेन्द्र–जन्मोत्सव नीहाळता हता; विद्याधरो
आश्चर्यथी जोता हता. देवो आनंदित थईने जन्मकल्याणकसंबंधी अनेक नाटक करता
हता...दुन्दुभी वाजां वागता हता, सुगंधी दीप अने धूप प्रगटता हता; चारेकोर
जिनेन्द्रदेवना महिमानी चर्चा चालती हती; भगवानना पवित्र गंधोदकने देवो भक्तिनी
मस्तके चढावता हता.
अभिषेक बाद ईन्द्रोए जिनभगवाननुं पूजन कर्युं; ने जन्माभिषेकनी विधि
समाप्त करी. भगवान मेरूपर्वत उपर चूडामणिरत्न समान शोभता हता. ईन्द्र तो
जेमनो अभिषेक करनार हतो, मेरूपर्वत जेवुं ऊंचुं स्थान जेमना स्नाननुं आसन हतुं,
देवीओ ज्यां आनंदथी नाचती हती, देवो ज्यां दास हता, अने क्षीरसमुद्र जेमना स्नान
माटेना पाणीनो हांडो हतो, –आवा अतिशयप्रशंसनीय पवित्र आत्मा भगवान
ऋषभदेव समस्त जगतने पवित्र करो... सदा जयवंत हो.
(आ रीते ऋषभप्रभुना जन्माभिषेकनुं वर्णन थयुं. त्यारबाद ईन्द्रद्वारा स्तुति,
अयोध्यामां आगमन, तथा भगवान ऋषभकुमारनी बालचेष्टा आप आवता अंकमां
वांचशोजी.)
जय आदिनाथ
विकल्प वगरनी वस्तुनो अनुभव
चैतन्यवस्तु विकल्प वगरनी निर्विकल्प छे, एटले तेना अनुभव माटे
पण निर्विकल्प परिणाम ज होवा जोईए. विकल्पनी सन्मुखता वडे
चैतन्यवस्तु अनुभवमां आवी शके नहि. चैतन्यस्वभावनी सन्मुख थतां ज
विकल्पो तूटीने निर्विकल्पदशा थाय छे; आ रीते स्वभावनी सन्मुखता ने
विकल्पथी विमुखतावडे ज्ञानने पोतामां समेटीने ज्यारे आत्मा अनुभव करे छे
त्यारे आत्मानो सम्यक् अनुभव थाय छे, त्यारे आत्मानुं साचुं दर्शन
(सम्यग्दर्शन) थाय छे. त्यारे भगवान आत्मा आनंदसहित प्रसिद्ध थाय छे.
धर्मात्मानी अनुभूतिनुं आनंदकारी वर्णन हवेना लेखमां वांचोजी