Atmadharma magazine - Ank 279
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : पोष : २४९३
धरे छे. तेना उपर पहेलां भद्रसाल वन छे, पछी नन्दनवन छे, पछी सौमनसवन छे,
ने पछी पांडुकवन छे. चारेय वनमां चारे दिशामां मणिरत्नोथी शोभित एकेक
जिनमंदिर छे, पांडुकवनमां स्फटिकमणिनी पांडुकशिला छे, तेना उपर तीर्थंकरोनो
जन्माभिषेक थाय छे, तेथी ते शिला अत्यंत पवित्र ने सिद्धशिला जेवी शोभायमान छे.
देवो सदा तेनी पूजा करे छे. तेना उपर श्रेष्ठ सिंहासन छे. सुमेरूपर्वतनी प्रदक्षिणा करीने
ईन्द्रे हर्षपूर्वक बालतीर्थंकरने पांडुकशिला पर बिराजमान कर्या; त्यारे जाणे के
जिनेन्द्रदेवकी माता होय एम ते पांडुक शिला शोभी ऊठी. जिनेन्द्र भगवानना
जन्मकल्याणकनो वैभव देखवा माटे चारे बाजु देवो बेसी गया. जाणे के बधा देवो स्वर्ग
खाली करीने आ मेरूपर्वत उपर आवी गया होय एम मेरूपर्वत स्वर्गसमान शोभतो
हतो. ने त्यां ईन्द्रोए एवो दिव्यमंडप रच्यो हतो के जेमां त्रणलोकना बधा जीवो बेसे
तोपण संकडाश न पडे. चारे बाजु देवोनां दुन्दुभी वाजां वागता हता.
आवा आनंदकारी वातावरण वच्चे ईन्द्रोए सोनानां मोटा कळशवडे, ऋषभ–
तीर्थंकरनो जन्माभिषेक शरू कर्यो. क्षीरसमुद्रमांथी कळश भरी भरीने देवो एकबीजाना
हाथमां आपता हता, ने एक साथे घणा कळश लेवा माटे ईन्द्रे विक्रियाबळथी पोताना
एक हजार हाथ बनावी दीधा हता. हजारहजार हाथवाळा सौधर्मईन्द्रे जयजयकारपूर्वक
ज्यारे जिनेन्द्रभगवानना मस्तक उपर पहेली जलधारा छोडी त्यारे बीजा करोडो देवो
पण आनंदित थईने जयजयकारपूर्वक मोटो कोलाहल करवा लाग्या. अहा, ए जिन–
अभिषेकना महिमानी शी वात! जोके गंगा अने सिंधु नदीना मोटा धोध जेवी
जलधारा मस्तक पर पडती हती तोपण ते बाल–तीर्थंकर मेरु जेवा स्थिर हता ने
पोताना अद्भुत माहात्म्यवडे लीला मात्रमां ते जलधारा झीलता हता. भगवान तो
स्वयं पवित्र ज हता, ने पोताना पावन अंग वडे तेमणे ते पाणीने पण पवित्र करी
दीधुं हतुं; तथा ते पाणीए समस्त दिशामां फेलाईने आखा जगतने पवित्र करी दीधुं
हतुं. ते पाणीनां रजकणो ऊंचे ऊडवाथी, तेना स्पर्शवडे प्रसन्न थईने आकाश पण जाणे
हसतुं होय तेवुं शोभतुं हतुं. ए वखते मेरूनी शोभा देवोने पण एवी अभूतपूर्व
लागती हती–जाणे के पूर्वे कदी जोई न होय! कलकल करतो अभिषेकजलनो प्रवाह
अमृतसमान शोभतो हतो, अथवा तो भगवानना यशनो ज प्रवाह वहेतो होय एवो
लागतो हतो. चारे तरफ उछळता ते अभिषेकजळमां सूर्य–चंद्र ने ताराओ पण भींजाई
गया हता. भगवानना जन्माभिषेकथी आखी पृथ्वी संतुष्ठ थई गई