Atmadharma magazine - Ank 279
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९३ आत्मधर्म : २३ :
महेलमां जईने ईन्द्राणीए अत्यंत प्रेमथी ऋषभकुमारना तथा जिनमाता–मरुदेवीनां
दर्शन कर्या अने प्रदक्षिणा दईने स्तुति करवा लागी: हे माता! आप मंगलरूप छो,
पुण्यवान छो, महान देवी छो, अने त्रणलोकनुं कल्याण करनारा छो.
पछी ईन्द्रजाळ वडे माताने ऊंघाडी दीधा, अने बीजुं बनावटी बाळक तेनी पासे
राखीने जिनकुमारने तेडी लीधा. अहो, चूडामणिरत्नसमान ए जगतगुरु–जिनबालकने
पोताना बे हाथमां तेडतां ते ईन्द्राणीने परम आनंद थयो; उत्कृष्ट प्रीतिपूर्वक ते वारंवार
बाळकनुं मुख देखती हती, वारंवार तेना शरीरनो स्पर्श करती हती, ने वारंवार तेने
सुंघती हती. अत्यंत दुर्लभ एवा भगवानना शरीरना स्पर्शने पामवाथी जाणे के त्रण
लोकनो वैभव मळी गयो होय–एम ते प्रसन्नता अनुभवती हती. आम आनंदपूर्वक
भगवानने लईने ईन्द्राणी जती हती त्यारे त्रणलोकमां मंगळ करनारा एवा ते
जिनभगवाननी आगळ–आगळ दिग्कुमारी देवीओ अष्टमंगळ सहित चालती हती.
ऐरावतथी पासे आवीने ते जिनबालकने ईन्द्रना हाथमां बिराजमान कर्या, ने ईन्द्र
अतिशय हर्षपूर्वक पुलकितनयने तेमनुं सुंदर रूप देखवा लाग्या, तथा स्तुति करवा
लाग्या के हे देव! आप केवळज्ञानसूर्यने उत्पन्न करनारा उदयाचल छो;
अज्ञानअंधकारमां डुबेलुं आ जगत आपना द्वारा ज ज्ञानप्रकाश पामशे. आप
गुरुओना पण गुरु छो; गुणोना समुद्र छो, तेथी आपने नमस्कार हो. भगवान! आप
त्रण जगतने जाणनारा छो तेथी आपनी पासेथी ज्ञानप्राप्तिनी ईच्छाथी अमे आपना
चरणकमळने घणा आदरपूर्वक अमारा मस्तक उपर धारण करीए छीए. आम स्तुति
करीने जयजयकारपूर्वक मेरूपर्वत तरफ चाल्या. त्यारे देवोनां मंगल वाजां वागता हता
ने अप्सरादेवीओ भक्तिथी नृत्य करती हती.
ऐरावत हाथी उपर बेठेला सौधर्मईन्द्रे भगवानने गोदमां लीधा हता,
ऐशानईन्द्रे भक्तिथी छत्र धर्युं हतुं ने सनत्कुमार तथा माहेन्द्र ए बे ईन्द्रो भक्तिथी
चामर ढाळता हता. ईन्द्रोनी आवी भक्ति, अने आवी जिनविभूति देखीने घणा
मिथ्याद्रष्टि देवो पण सम्यक् जैनमार्गना श्रद्धाळु बन्या हता.
आ प्रमाणे भगवानना जन्माभिषेकनी सवारी ९९००० योजन ऊंचा मेरूपर्वत
पर आवी पहोंची. जंबुद्वीपना मुगटसमान आ मेरूपर्वत सोनानो छे, ने
तीर्थंकरभगवानना अभिषेकने लीधे पवित्र तीर्थरूप छे, तेथी सूर्य–चंद्र वगेरे ज्योतिषी
देवोना विमानो सदा तेनी प्रदक्षिणा करे छे. ऋद्धिधारक मुनिवरो त्यां जईने ध्यान