: २२ : आत्मधर्म : पोष : २४९३
आ रीते प्रगटपणे अनेक मंगलने धारण करनार तथा देवीओ वडे पूज्य एवा
मरुदेवीमाता, परम सुखकारी तथा त्रण लोकमां आश्चर्यकारी एवा भगवान
ऋषभदेवरूपी तेजस्वी पुत्रने धारण करता हता.
(आ रीते ऋषभदेवप्रभुना गर्भकल्याणकनुं वर्णन थयुं.)
सवा नव महिना बाद, फागण वद नोमना सुप्रभाते, पूर्व दिशामां जेम सूर्य
ऊगे तेम मरुदेवीमाताए अयोध्या नगरीमां भगवान ऋषभदेवने जन्म आप्यो.
त्रण ज्ञानथी सुशोभित भगवान जन्म्या के तरत त्रण लोकमां आनंद छवाई
गयो... पृथ्वी आनंदथी धणधणी ऊठी ने समुद्र आनंदतरंगथी ऊछळी रह्यो; आकाश
निर्मळ थयुं ने दिशाओ प्रकाशित बनी; प्रजाजनो हर्षित बन्या ने देवोनेय आश्चर्य थयुं.
कल्पवृक्षोमांथी फूल वरसवा लाग्या ने देवोनां वाजां एनी मेळे वागवा मांडया; संगंधित
वायु वहेवा लाग्यो... ईन्द्रना ईन्द्रासन पण कंपी ऊठया! स्वर्गना घंटनाद अने शंख
वागवा मांडया. भगवान ऋषभदेवना अवतारथी सर्वत्र आनंद छवाई गयो.
सिंहासन कम्पायमान
थवाथी ईन्द्रे अवधिज्ञान वडे
जाणी लीधुं के अयोध्यानगरीमां
भव्य जीवोने विकसित करनार
तीर्थंकरदेवनो अवतार थई
चूक््यो छे; तरत सिंहासन
उपरथी नीचे ऊतरीने ईन्द्रे ए
तीर्थंकरने नमस्कार कर्या अने
तेमनो जन्मोत्सव उजववा माटे
ऐरावत हाथी उपर बेसीने
ठाठमाठथी अयोध्यापुरी आव्या.
माताजीना