: पोष : २४९३ आत्मधर्म : २१ :
[तत्त्वचर्चामां मरुदेवीमाताजीना आनंदकारी जवाब सांभळीने देवीओने बहु
प्रसन्नता थाय छे; तेथी फरीफरीने नवा नवा प्रश्नो पूछे छे–]
देवी–हे माता! देवेन्द्र जेने पूजे एवो उत्तम पुरुष कोण?
माता– ‘मारो पुत्र’ अर्थात् तीर्थंकर भगवान.
देवी–संसारमां जीवो केम दुःख पामे छे?
माता–आत्मानो अनुभव करता नथी तेथी.
देवी–हे माता! ‘पुरुष’ नाम क््यारे सफळ थाय?
माता–मोक्षनो पुरुषार्थ करे त्यारे.
देवी–शेना वगरनो नर पशु समान छे?
माता–भेदज्ञानरूप विद्या वगरनो नर पशुसमान छे.
देवी–हे माता! जगतमां कयुं कार्य उत्तम छे?
माता–आत्मध्यान ते जगतमां उत्तम कार्य छे.
देवी–हे माता! आपना उदरमां कोण बिराजे छे?
माता–जगतगुरु भगवान ऋषभदेव!
ज्ञानमय अने उत्कृष्ट ज्योतिस्वरूप एवा तीर्थंकरपुत्रने हुं मारा उदरमां धारण
करी रही छुं–एम जाणीने ते माता आनंदित अने संतुष्ठ रहेता हता. जेम रत्नोथी
भरेली भूमि अतिशय शोभे तेम जेमना गर्भमां तीर्थंकर जेवा रत्न भर्या छे एवा ते
माता अतिशय शोभता हता; तेमने कोई प्रकारनुं कष्ट थतुं न हतुं. भगवानना तेजनो
एवो प्रभाव हतो के गर्भवृद्धि थवा छतां माताना शरीरमां कोई विकृति थई न हती.
जेम स्फटिकमणिना घरमां वच्चे दीवो शोभे, तेम मरुदेवी माताना निर्मळ गर्भगृहमां
मति–श्रुत–अवधि ए त्रण ज्ञानरूपी दीपकथी विशुद्ध भगवान शोभता हता. ईन्द्राणी
पण गुप्तरूपे मरुदेवी मातानी सेवा करती हती, ने जगतना लोको पण तेने नमस्कार
करता हता. झाझुं शुं कहेवुं? त्रणलोकमां ते ज एक प्रशंसनीय हती; अने जगतना नाथ
एवा ऋषभतीर्थंकरनी जननी होवाथी ते आखा लोकनी जननी हती, ने जगतने
आनंद देनारी हती.