Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९३ आत्मधर्म : ७ :
एकाग्रता थई छे के पर तरफनो विकल्प ऊठतो ज नथी–एवी दशानी आ वात छे.
धर्मीने विकल्प ऊठे पण ते तेने छोडीने स्वरूपमां ठरवा मांगे छे. अने ज्यां
स्वरूपमां ठर्यो त्यां जगत विषेनी चिंतानो अभाव थवानी परम उदासीनता सहेजे
वर्ते छे. तेने जगतसंबंधी राग–द्वेष नथी तेथी, जगत काष्ठपाषाणवत् भासे छे एम
कह्युं छे. पहेलां देहादिथी भिन्न आत्माने जाणीने भेदज्ञानना अभ्यास वडे स्वरूपमां
ठरतां समस्त विकल्पो छूटीने जीव मुक्ति पामे छे.–आवो आत्माना भेदज्ञानना
अभ्यासनो महिमा छे.
।। ८०।।
प्रश्न :– आत्माने स्वज्ञेय करवा शुं करवुं?
उत्तर :– आत्मस्वभावनो महिमा वधारवो, ने रागादि
विभावनो महिमा छोडवो–ते ज आत्माने स्वज्ञेय
करवानो उपाय छे. स्वभाव अने विभावनी
मर्यादाने वारंवार विचारवी; तेनी भिन्नता
जाणीने स्वभावमां एकतानो ने विभावथी
भिन्नतानो प्रयत्न करवो. चैतन्यनी महत्ता ने
विभावनी तूच्छता समजवी. जेनी महत्ता समजे
तेमां एकाग्रता थया विना रहे नहि, ने जेने तूच्छ
समजे तेनाथी भिन्नता कर्या विना रहे नहि.
पहेलां आ वात लक्षमां लईने तेनो विशेष–
विशेष प्रयत्न करवो जोईए.