अंतिम अवताररूपे योध्यानगरीमां अवतरी चुकया छे ने ईन्द्रोए
मेरूपर्वत उपर तेमनो जन्माभिषेक करी लीधो छे. त्यारबाद ए
जन्मोत्सवमां शुं–शुं बन्युं–ते अहीं वांचो.
पहेराव्या, अने घणा आदरपूर्वक भगवानना ललाट पर तिलक कर्युं. परंतु जगतना
तिलकस्वरूप एवा भगवाननी शोभा शुं ते तिलक वडे हती? नहीं! ऊल्टुं ते तिलक
भगवानने लीधे शोभतुं हतुं. जगतना मुगटस्वरूप एवा भगवानने मुगट वगेरे
अनेक दैवी आभूषणो ईन्द्राणीए पहेराव्यां. भगवानना कान वगर विंध्ये ज छिद्रवाळां
हता, तेमां ईन्द्राणीए उत्तम मणिमय कुंडल पहेराव्यां.
परंतु बे आंखोवडे तेने सन्तोष न थयो तेथी एक हजार आंखो बनावीने ते
भगवाननुं रूप जोवा लाग्यो. अने पछी ते ईन्द्रादि देवो तीर्थंकर भगवाननी स्तुति
करवा लाग्या: हे देव! अमने परम आनंद देवा माटे आपनो अवतार छे. आपनां
वचनकिरणोवडे अमारा अंतरनो अज्ञानअंधकार नष्ट थाय छे. प्रभो! आप देवोमां
आदि देव छो, आप त्रण जगतना आदि गुरु छो, आप आदि विधाता (विधिना
समजावनार) छो, अने आप धर्मना आदि नायक छो. आप ज जगतना पिता छो.
प्रभो, आप तो पवित्र ज छो, परंतु पापथी मलिन एवुं आ जगत आपना
जन्माभिषेक