Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९३ आत्मधर्म : ९ :
भगवान ऋषभदेव
तेमना पवित्र जीवननी आनंदकारी कथा
भगवत् जिनसेनस्वामी रचित महापुराणना आधारे: ले. ब्र. हरिलाल जैन
[लेखांक दसमो]
दश भवथी चैतन्यनी आराधना करतां करतां आपणा चरित्रनायक
अंतिम अवताररूपे योध्यानगरीमां अवतरी चुकया छे ने ईन्द्रोए
मेरूपर्वत उपर तेमनो जन्माभिषेक करी लीधो छे. त्यारबाद ए
जन्मोत्सवमां शुं–शुं बन्युं–ते अहीं वांचो.
अभिषेक पछी ईन्द्राणीए भगवानना शरीरने उत्तम वस्त्रद्वारा लूछयुं ने
अत्यंत हर्षपूर्वक स्वर्गमांथी लावेला वस्त्राभूषणो जगत्गुरु भगवान ऋषभकुमारने
पहेराव्या, अने घणा आदरपूर्वक भगवानना ललाट पर तिलक कर्युं. परंतु जगतना
तिलकस्वरूप एवा भगवाननी शोभा शुं ते तिलक वडे हती? नहीं! ऊल्टुं ते तिलक
भगवानने लीधे शोभतुं हतुं. जगतना मुगटस्वरूप एवा भगवानने मुगट वगेरे
अनेक दैवी आभूषणो ईन्द्राणीए पहेराव्यां. भगवानना कान वगर विंध्ये ज छिद्रवाळां
हता, तेमां ईन्द्राणीए उत्तम मणिमय कुंडल पहेराव्यां.
ए प्रमाणे वस्त्रालंकारथी शोभित भगवानना अद्भुत रूपने देखीने स्वयं
ईन्द्राणीने पण महान आश्चर्य थयुं. ईन्द्र पण आश्चर्यथी भगवाननुं रूप जोवा लाग्यो,
परंतु बे आंखोवडे तेने सन्तोष न थयो तेथी एक हजार आंखो बनावीने ते
भगवाननुं रूप जोवा लाग्यो. अने पछी ते ईन्द्रादि देवो तीर्थंकर भगवाननी स्तुति
करवा लाग्या: हे देव! अमने परम आनंद देवा माटे आपनो अवतार छे. आपनां
वचनकिरणोवडे अमारा अंतरनो अज्ञानअंधकार नष्ट थाय छे. प्रभो! आप देवोमां
आदि देव छो, आप त्रण जगतना आदि गुरु छो, आप आदि विधाता (विधिना
समजावनार) छो, अने आप धर्मना आदि नायक छो. आप ज जगतना पिता छो.
प्रभो, आप तो पवित्र ज छो, परंतु पापथी मलिन एवुं आ जगत आपना
जन्माभिषेक