: १० : आत्मधर्म : माह : २४९३
वडे पवित्र थयुं छे, तेम ज आ मेरूपर्वत ने क्षीरसमुद्र पण पावन थया छे. हे
नाथ! परब्रह्म–परमात्मा नजरे न देखाय एम कोई कहे छे ते जूठ छे केम के परम
ज्योति स्वरूप परमात्मा एवा आप आज अमने प्रत्यक्ष द्रष्टिगोचर थई रह्या छो.
हे भगवान! आपनो आत्मा पवित्र छे तेथी आपने नमस्कार हो.
आपना गुणो सर्वत्र प्रसिद्ध छे तेथी आपने नमस्कार हो.
आप जन्म–मरणनो नाश करनारा छो तेथी आपने नमस्कार हो.
आप त्रण जगतना परमेश्वर छो तेथी आपने नमस्कार हो.
प्रभो आप पृथ्वी जेवा क्षमावंत छो; जलसमान सौने आह्लादित करनारा
छो; वायु जेवा निष्परिग्रही छो; अग्निनी जेम आपनुं ध्यान–तेज सदा प्रदीप्त छे,
तथा आकाशनी जेम आप सदा निर्विकारी छो.
मेरु उपर ईन्द्र ऋषभदेव भगवाननी स्तुति करी रह्यो छे–
१. हे प्रभो! महान बळना धारक आप ‘महाबल’ छो.
२. ललित–अंगना धारक एवा आप ‘ललितांग’ छो.
३. धर्मतीर्थ प्रवर्ताववामां आप मजबूत ‘वज्रजंघ’ छो.
४. हे जिन! आप सुविशुद्ध–पूज्य होवाथी ‘आर्य’ छो.
प. दिव्य श्री अर्थात् शोभाना धारक आप ‘श्रीधर’ छो.
६. उत्तम भाग्यवाळा होवाथी आप ‘सुविधि’ छो.
७. अविनाशी पदना स्वामी होवाथी आप ‘अच्युतेन्द्र’ छो.
८. वज्र जेवी नाभिना धारक आप ‘वज्रनाभि’ छो.
९. सर्व प्रयोजन सिद्ध होवाथी आप ‘सर्वार्थसिद्ध’ छो.
१०. दश अवतारमां अंतिम अवतारप्राप्त आप ‘ऋषभदेव’ छो.
आ प्रमाणे भगवाननी स्तुति करतां करतां तेमना दश अवतार पण
बतावी दीधा. स्तुति करीने पछी भगवानने ऐरावत हाथी पर बिराजमान करीने
ईन्द्रो आनंदपूर्वक अयोध्या आव्या.
अयोध्यामें उत्सव किनो........
अयोध्या नगरीनी शोभा अद्भुत हती. तेनी भूमि अने महेलो मणिमय
हता; तेनो सोनानो गढ रत्नोथी जडेलो हतो. भगवान ऋषभदेवनी जन्मभूमि
होवाथी