Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९३ आत्मधर्म : ११ :
ते शुद्ध रत्ननी खाण हती ने करोडो महापुरुषरूपी अमूल्य रत्नो तेणे उत्पन्न कर्या हता.
तेनी बाजुना प्रदेशमां सरयू नदी वहेती हती.
भगवानने लईने ईन्द्र अयोध्या आव्या अने नाभिराजाना महेलमां सिंहासन
पर बिराजमान कर्या. ते प्रियदर्शन भगवानने देखीने नाभिराजानुं शरीर हर्षथी
रोमांचित थयुं; ने मायामयी निद्रा दूर थतां माता मरुदेवी पण हर्षपूर्वक भगवानने
देखवा लाग्या. त्यारबाद मातापिताए प्रसन्नचित्तथी ईन्द्र–ईन्द्राणी सामे जोयुं; ने ईन्द्र–
ईन्द्राणीए महामूल्य आभूषणो अर्पण करीने मातापितानुं सन्मान कर्युं. तथा स्तुति
करी के आप महान धन्य छो, लोकमां सौथी श्रेष्ठ पुत्र आपने त्यां अवतर्यो छे. आप
जगतना गुरुना पण गुरु (माता–पिता) छो, आप अनेक कल्याणने प्राप्त करनारा छो.
आपनो महेल आजे जिनालय समान पूज्य छे, ने आप पण पूज्य छो.
स्तुति कर्या बाद ईन्द्रे भगवानना जन्माभिषेक उत्सवनी उत्तम कथा करी, ते
सांभळीने माता–पिताने परम हर्षने आश्चर्य थयुं. तेमणे नगरजनोनी साथे महान
विभूति सहित अयोध्यापुरीमां फरीने भगवाननो जन्मोत्सव कर्यो. ते वखते
अयोध्यानगरी स्वर्गपुरी समान शोभती हती, आखा जगतने आनंदित करनारो
उत्सव अयोध्यापुरीमां थयो. नगरजनोनो आनंद देखीने ईन्द्रे पण आनंद नामना
नाटकवडे पोतानो आनंद प्रगट कर्यो, ने अद्भुत तांडवनृत्य कर्युं. नाटकद्वारा
भगवानना महाबल वगेरे दश भव तथा गर्भकल्याणक अने जन्मकल्याणकनां द्रश्यो
देखाड्यां; ए वखते गंभीर शब्दोथी एक साथे करोडो वाजां वागतां हता...ने ईन्द्र हजार
हाथ तथा हजार नेत्र बनावीने आनंदनृत्य करतो हतो, तेनी आंगळी उपर देवीओ
नाचती हती. ईन्द्रनुं आ
श्चर्यकारी नृत्य जोईने महाराजा अने महादेवी चकित थया.
ईन्द्रोए जगतमां श्रेष्ठ एवा भगवाननुं ‘वृषभदेव’ नाम राख्युं. वृष एटले उत्तमधर्म
तेना वडे (भाति) शोभायमान होवाथी तीर्थंकर भगवानने ईन्द्रे ‘वृषभस्वामी’ कह्या
अथवा भगवानने ‘पुरुदेव’ नामथी पण संबोध्या. अने भगवान जेवडा ज रूपवाळा
देवकुमारोने तथा देवीओने भगवाननी सेवामां राखीने ईन्द्रो पोतपोताना स्वर्गमां
गया. ते देवीओ भगवानने नवडाववा, खवराववा, वस्त्राभूषण पहेराववा–वगेरे
कार्योवडे ए बालतीर्थंकरनी सेवा करती हती.
भगवाननी बालचेष्टा
भगवान ऋषभदेवनी बालचेष्टाओ आश्चर्यकारी हती; क््यारेक तेओ मंद मंद