तेनी बाजुना प्रदेशमां सरयू नदी वहेती हती.
रोमांचित थयुं; ने मायामयी निद्रा दूर थतां माता मरुदेवी पण हर्षपूर्वक भगवानने
देखवा लाग्या. त्यारबाद मातापिताए प्रसन्नचित्तथी ईन्द्र–ईन्द्राणी सामे जोयुं; ने ईन्द्र–
ईन्द्राणीए महामूल्य आभूषणो अर्पण करीने मातापितानुं सन्मान कर्युं. तथा स्तुति
करी के आप महान धन्य छो, लोकमां सौथी श्रेष्ठ पुत्र आपने त्यां अवतर्यो छे. आप
जगतना गुरुना पण गुरु (माता–पिता) छो, आप अनेक कल्याणने प्राप्त करनारा छो.
आपनो महेल आजे जिनालय समान पूज्य छे, ने आप पण पूज्य छो.
विभूति सहित अयोध्यापुरीमां फरीने भगवाननो जन्मोत्सव कर्यो. ते वखते
अयोध्यानगरी स्वर्गपुरी समान शोभती हती, आखा जगतने आनंदित करनारो
उत्सव अयोध्यापुरीमां थयो. नगरजनोनो आनंद देखीने ईन्द्रे पण आनंद नामना
नाटकवडे पोतानो आनंद प्रगट कर्यो, ने अद्भुत तांडवनृत्य कर्युं. नाटकद्वारा
भगवानना महाबल वगेरे दश भव तथा गर्भकल्याणक अने जन्मकल्याणकनां द्रश्यो
देखाड्यां; ए वखते गंभीर शब्दोथी एक साथे करोडो वाजां वागतां हता...ने ईन्द्र हजार
हाथ तथा हजार नेत्र बनावीने आनंदनृत्य करतो हतो, तेनी आंगळी उपर देवीओ
नाचती हती. ईन्द्रनुं आ
देवकुमारोने तथा देवीओने भगवाननी सेवामां राखीने ईन्द्रो पोतपोताना स्वर्गमां
गया. ते देवीओ भगवानने नवडाववा, खवराववा, वस्त्राभूषण पहेराववा–वगेरे
कार्योवडे ए बालतीर्थंकरनी सेवा करती हती.