Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९३ आत्मधर्म : १३ :
विवाह अने भरत वगेरे १०१ पुत्रो
भगवान ऋषभदेव युवान थया, तेमनुं रूप अतिशय शोभी ऊठयुं; तेमनुं लोही
दूध जेवुं सफेद हतुं; तेमना शरीरमां मेल के परसेवो न हतो; विष के शस्त्रथी ते अभेद्य
हतुं. परमऔदारिक हतुं ने मोक्षनुं कारण हतुं. भगवानना शरीर पर स्वस्तिक, कमळ,
समुद्र, हाथी, सिंह, सूर्य, चंद्र, रत्नदीप, वृषभ, जंबुद्वीप, आठ प्रतिहार्य, आठ
मंगलद्रव्य वगेरे १००८ सुलक्षणो शोभता हता. राग–द्वेषरहित भगवानना चित्तमां
अचळ लक्ष्मी प्रत्ये बहु थोडो ज प्रेम हतो.
भगवाननी युवावस्था देखीने नाभिराजा एक दिवस विचारवा लाग्या के–आ
ऋषभदेवना चित्तने हरण करे एवी सुंदर स्त्री क््यांथी होय? अने कदाचित एवी सुंदर
स्त्री मळे तोपण तेमने विषयराग अत्यन्त मंद होवाथी तेमना विवाह करवानुं घणुं
मुश्केल छे. वळी बीजी वात ए छे के, धर्म–तीर्थनी प्रवृत्ति करवा माटे तेमनो महान
उद्यम छे एटले तेओ जरूर संसारबंधन तोडीने मस्त हाथीनी जेम वनमां जशे ने दीक्षा
धारण करशे. तोपण, तेमनो दीक्षाकाळ आव्या पहेलां तेमने माटे योग्य स्त्रीनो विचार
करवो जोईए.
आम विचारी, भगवान पासे जईने नाभिराजा कहेवा लाग्या–हे देव! आप तो
जगतना अधिपति अने स्वयंभू छो; आपनी उत्पत्तिमां अमे माता–पिता छीए ए तो
केवळ लोकव्यवहार छे. मारी अभ्यर्थना छे के आप संसारसृष्टिमां पण आपनुं चित्त
लगावो, ने कोई श्रेष्ठ कन्या साथे विवाह माटे संमति आपो. जो आप मने कोई पण
प्रकारे गुरु (मोटा) मानता हो तो मारा आ वचननुं उल्लंघन करवुं न जोईए.
–आम कहीने नाभिराजा चूप रह्या, त्यारे भगवाने सहेज हसतां हसतां ‘ओम
कहीने ते वातनो स्वीकार कर्यो. नाभिराजाए अत्यंत हर्षपूर्वक, ईन्द्रनी सलाह लईने,
कच्छ अने महाकच्छ राजानी बे बहेनो यशस्वती अने सुनन्दा साथे ऋषभकुमारना
विवाहनो उत्सव कर्यो. देवोए पण प्रसन्नताथी ते उत्सवमां भाग लीधो. पुत्रवधुओने
देखीने नाभिराजा अने मरुदेवी एकदम प्रसन्न थया. भगवान ऋषभकुमारमां कामदेव
जो के अतिशय भग्न थई गयो हतो छतां गुप्तरूपे ते पोतानो संचार करतो हतो. बंने
राणीओ साथे भोगोपभोगमां घणो काळ वीत्यो.
एक रात्रे यशस्वती महादेवीए स्वप्नमां कोळियो थई गयेली पृथ्वी, मेरूपर्वत,