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ला ख वा त नी वा त
गुरुदेव गामे गामे एक वात उपदेशता जाय छे के भाई,
मनुष्यपणामां आवो अवसर तने मळ्यो छे तो तेमां आत्मानुं
हित केम थाय? ते समजी ले. धननी प्राप्ति माटे केटलो हेरान
थाय छे? ने केटलो प्रयत्न करे छे? तो हे भाई, चैतन्यनुं
साचुं सुख केम पमाय? पोतामां ज जे सुख भर्युं छे, पोतानुं
ते सुख पोताने केम अनुभवाय? तेने माटे तुं उद्यम कर.
रागथी भिन्न तारुं चैतन्यतत्त्व शुं छे तेना अनुभव वगर
बीजुं बधुं निरर्थक छे, तेमां आत्मानुं कल्याण नथी. आत्मानुं
कल्याण करवा माटे जीव–अजीवनी भिन्नतानुं वास्तविक
स्वरूप समजीने भेदज्ञान कर. भाई, आवो मोघों अवसर
मळ्यो छे तो आत्मानी दरकार करीने आत्महितने साधी ले.–
फरीफरीने सन्तोनो ए उपदेश छे.
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तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी * संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९३ माह (लवाजम: त्रण रूपिया) वर्ष २४ अंक ४