Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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वा.....त्स.....ल्य
‘आपणे सौ साधर्मी’ एवा धार्मिक वात्सल्यनी उत्तमतासूचक लेख गतांकमां
आ स्थाने प्रगट थयेल, ते संबंधमां वांचकोए प्रसन्नता व्यक्त करी छे. गुरुदेवना
प्रभावे जेम आजे ज्ञानप्रभावना भारतभरमां विकसी रही छे तेम सर्वत्र साधर्मीओमां
वात्सल्य पण विस्तरी रह्युं छे, –ते देखीने हर्ष थाय छे. बंधुओ, चारेकोर विकथाथी के
कुतत्त्वोथी भरेला आ संसारमां साचा वीतरागी देव–गुरु–धर्मना उपासक जीवो बहु
थोडा छे; एवा साधर्मीना मिलनथी के एनी पासेथी धर्मचर्चाना बे शब्दो सांभळवाथी
मुमुक्षुने आ असार संसारनो भार ऊतरी जाय छे. साधर्मीओना मिलनमां तो
वीतरागी धर्मनुं बहुमान, धर्मात्मा जीवोनी प्रशंसा, देव–गुरु–शास्त्रनी उपासनासंबंधी
चर्चा–एवा ज प्रसंग होय, संसारना प्रसंग त्यां न होय. आम साधर्मीनो संग धर्मनी
भावना पुष्ट करे छे. एटले ज्यां पोतानी धर्मभावना पुष्ट थाय त्यां जिज्ञासुने
वात्सल्यनी उर्मि सहेजे आवे छे. एक ज गामे जता बे वटेमार्गु रस्तामां भेगा थतां
पण परस्पर स्नेह जागे छे, तेम एक ज धर्मने उपासीने मोक्षपुरी तरफ जई रहेला
मोक्षना बे वटेमार्गुओने पण परस्पर धर्मस्नेह जागे छे के अहो! जे मार्गे हुं जाउं छुं ते
ज मार्गे मारा साधर्मीओ आवे छे, एक ज पथना अमे पथिक छीए. –अमारा देव एक,
अमारा गुरु एक, अमारो धर्म एक, अमारो मार्ग एक. –आवुं एकत्व होय त्यां
वात्सल्य होय ज. धर्मात्माओनां वात्सल्यझरणां तो कोई अद्भुत होय छे. आ काळे
धर्मात्माओनुं एवुं वात्सल्य जोवा मळवुं –ए पण महान भाग्य छे. वात्सल्यवंता
धर्मात्मानां बे शब्दो पण संसारना बधा कलेशने खंखेरी नांखे छे. अंजना सती
दुनियाथी तरछोडायेली, पण ज्यारे मुनिओना श्रीमुखथी धर्मवात्सल्य भरेलां वचन
सांभळे छे त्यां तो आनंदथी उल्लसी जाय छे ने जीवनना बधा दुःख भूलाई जाय छे.
आम वात्सल्य ए एक महान औषध छे. संसारसंबंधी रागबंधन तो जीवने मोहित
करनारुं छे, पण धर्मसंबंधी स्नेहरूप जे साधर्मी–वात्सल्य ते मोहबंधन तोडवा अने
धर्मने साधवा माटे उत्साह प्रेरनारुं छे. गुरुदेवादि संतधर्मात्माओना प्रतापे आवुं
वात्सल्य साधर्मीओमां सर्वत्र प्रसरी रह्युं छे...ते वात्सल्य वधु ने वधु विस्तरो.
––जयजिनेन्द्र