Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : माह : २४९३
थतुं के आवुं कदी जोयुं नथी. आंकडियाना आंगणे आवो महोत्सव उजवाय छे ए तो
गुरुदेवनो ज महान पुण्यप्रताप छे. ईन्दोरना प्रतिष्ठाचार्य पं. श्री नाथुलालजी दरेक
विधि शांतिपूर्वक व्यवस्थित रीते करावता हता ने दरेक प्रसंगनी समजण आपता हता,
तेथी विशेष आनंद थतो हतो.
बपोरे प्रवचन पछी नेमकुंवरनुं पारणाझुलन थयुं. ईन्द्राणीए, माताजीए तेमज
अनेक भक्तोए भावपूर्वक प्रभुने पारणे झुलाव्या. रात्रे नेमकुमारना विवाहनी तैयारी,
राजाओनुं आगमन अने भेट, पशुओने पींजरे पुरायेला देखीने प्रभुने वैराग्य, अने
रथ पाछो वाळीने दीक्षानी तैयारीनां द्रश्यो थया हता. बीजे दिवसे (पोष वद १४)
सवारमां प्रभुना वैराग्यनुं द्रश्य, राजीमतीनी भावना, लौकांतिक देवोद्वारा स्तुति अने
संबोधनपूर्वक वैराग्यनी अनुमोदना, तथा ईन्द्रोद्वारा दीक्षाकल्याणक–वगेरे द्रश्यो थया
हता. ज्यारे पालखीमां विराजमान प्रभुजी गीरनार तरफ जई रह्या हता त्यारे आखा
गामनी जनता प्रभुनी साथे जई रही हती, ए द्रश्य अनेरुं हतुं. आजे भगवान
ऋषभदेवना मोक्षकल्याणकनो दिवस हतो, ए ज दिवसे नेमप्रभुनो दीक्षाकल्याणक थयो;
तथा जे स्थाने दीक्षाविधि थई ते स्थानेथी गीरनारतीर्थना पण दर्शन थाय छे. वनमां
दीक्षा पछी प्रभु तो आत्मध्यानमां लीन थया... पछी मुनिदशानुं स्वरूप समजावतुं
वैराग्यप्रवचन थयुं. प्रवचनमां मुनिदशानी भावनाने गुरुदेव वारंवार मलावता हता;
ने वैराग्यरसनो प्रवाह वहावता हता.
मुनि अतीन्द्रिय आनंदना अनुभवमां झुलता होय छे–देहथी भिन्न आनंदस्वरूप
आत्मानुं भान तो भगवानने पहेलेथी ज हतुं; आत्मभान सहित ने त्रण ज्ञान सहित
तो तेओ जन्म्या हता. पछी वैराग्य थतां मुनि थया ने आत्माना आनंदमां एकदम
लीन थया. –अहो, आवी मुनिदशानो अवसर क््यारे आवशे? अमारो आत्मा तो
दुनियाथी जुदो वीतरागमूर्ति, अमारी मोटाई अमारा वीतरागभावमां छे, ने रागमां
अमारी हीनता छ –एम समजी चैतन्यना ध्यानमां लीन थई क्षपकश्रेणी वडे भगवाने
केवळज्ञान प्रगट कर्युं. भगवाने गीरनार पर्वत उपर दीक्षा लीधी हती; केवळज्ञान पण
त्यां ज पाम्या हता, ने मोक्ष पण त्यांथी पाम्या हता. दीक्षा कल्याणक पछी भक्तो नेम–
मुनिराजनी भक्ति करता हता; सांजे नेमप्रभुनुं दीक्षाधाम–केवळधाम ने मोक्षधाम (–जे
आंकडियाथी २०/२प माईल दूर छे ने संध्यासमये स्पष्ट देखाय छे,) तेनां दर्शन