Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९३ आत्मधर्म : २७ :
थया हता. तेमां शरूआतमां कुमारिका–देवीओ द्वारा मंगलाचरणरूपे नेमप्रभुनी स्तुति
थई हती. त्यारबाद अहमिन्द्रोनी सभामां नेमप्रभुना जीव साथे बीजा देवोनी चर्चा;
ईन्द्रसभामां भगवानना गर्भकल्याणकनी तैयारी, प६ दिग्कुमारी देवीओ द्वारा माताजी
शिवादेवीनी सेवा, माताजीना १६ मंगळ स्वप्नो वगेरे द्रश्यो थया हता. बीजे दिवसे
सवारमां १६ मंगल स्वप्नोनुं फळ, प्रभुना गर्भकल्याणकथी सर्वत्र आनंद, माताजी
साथे देवीओनी तत्त्वचर्चा वगेरे द्रश्यो थया हता. गामनी जनता पण हरेक प्रसंगे
पोतानो आनंद व्यक्त करती हती. सांजे जिनमंदिर–वेदी–कळश–ध्वजनी शुद्धि थई हती;
ईन्द्र–ईन्द्राणीओ उपरांत, पू. बेनश्री–बेनना पवित्र हस्ते केटलीक मंगल विधि थई
हती. रात्रे नेमकुमारना पूर्वभवोनुं द्रश्य, तथा तत्त्वचर्चानो संवाद, तेमज भक्ति–
भजननो कार्यक्रम हतो. पोष वद १३ नी सवारमां भगवान नेमप्रभुना
जन्मकल्याणकनो उत्सव घणा आनंदथी उजवायो हतो. सौधर्मेन्द्रनी सभामां
जन्मोत्सवनी तैयारी, तथा समुद्रविजय महाराजाना दरबारमां जन्ममंगलनी वधाई
अने आनंदमय भक्ति वगेरे द्रश्यो हर्ष उपजावता हता. जनता खुशखुशाल हती ने
नगरीनुं वातावरण सर्वत्र उमंगमय हतुं. आंकडियाने माटे आ महोत्सव अभूतपूर्व
हतो. सौधर्मेन्द्र हाथी उपर आव्या ने जन्मधाम द्वारिकानगरीने प्रदक्षिणा दीधी,
शचीईन्द्राणीए बालतीर्थंकरने तेडीने सौधर्मेन्द्रना हाथमां आप्या, ने सौधर्मेन्द्र
आश्चर्यपूर्वक प्रभुना रूपने नीहाळी रह्या. पछी प्रभुने हाथी उपर लईने ठाठमाठ भरेला
सरघसपूर्वक मेरूपर्वते तेडी गया; मेरुने प्रदक्षिणा करी, ने पछी अत्यंत आनंदकारी
वातावरण वच्चे प्रभुनो जन्माभिषेक थयो; तेमां पू. गुरुदेवे पण भगवाननो अभिषेक
कर्यो...ए द्रश्य देखीने सौने घणो हर्ष थयो. मेरु उपर भगवान बहु ज शोभता
हता...मोक्षने साधवा माटे जेमनो अवतार छे एवा ए भगवानने जोतां भक्तो
आनंदित थता हता. धन्य प्रभो! आपनो आ छेल्लो अवतार छे. आपना अवतारनो
अंत थई गयो...अभिषेक पछी ईंद्राणीए बालतीर्थंकरने वस्त्राभूषणथी सुसज्जित
कर्या...ने हाथी उपर बिराजमान करीने नगरीमां आव्या. त्यां ईन्द्राए अने भक्तोए
अतिशय भक्तिथी नृत्य करीने पोतानो महान आनंद व्यक्त कर्यो.
जिनेन्द्र–कल्याणकना आवा अवनवा भावभीनां द्रश्यो देखीने सौ मुग्ध बनता
हता. स्व. बालचंदभाईना बंधुओ श्री कपुरचंदभाई तथा झवेरचंदभाई तो प्रसन्नताथी
गुरुदेव समक्ष कहेता हता के–आ तो भारे सरस छे...हृदय हलावी द्ये तेवुं छे. अनेकविध
समजण सहित कल्याणकनां द्रश्यो, अने जिनेन्द्रदेवनो महिमा नीरखतां तेमने