Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : माह : २४९३
आंकडियामां पंचकल्याणक––प्रतिष्ठा––महोत्सव
पोष वद ९ थी माह सुद १ (ता. ३ थी १०)
‘आंकडिया’ ज्यां २३ वर्ष पहेलां आपणा आ ‘आत्मधर्म’ नो जन्म थयो...त्यां
गुरुदेव पधारतां घणा ज उल्लासपूर्वक स्वागत थयुं, हाथी–घोडा ने वाजिंत्रो सहित
आखुं गाम स्वागतमां उमट्युं हतुं. आखी नगरी शोभती हती; तेमांय जिनमंदिर
सन्मुख विशाळ प्रतिष्ठामंडप विशेष शोभतो हतो. स्वागत बाद गुरुदेवे मांगळिक
संभळाव्युं ने तरत प्रतिष्ठामंडपमां जिनेन्द्रदेवने बिराजमान करीने झंडारोपण थयुं.
जापविधिनो प्रारंभ आगला दिवसे थई गयो हतो. सांजे पंचपरमेष्ठीनी पूजानुं
मंडलविधान शरू थयुं हतुं. बीजे दिवसे सवारमां अभिषेकपूर्वक विधान पूर्ण थयुं हतुं;
तथा अंकुरारोपण अने जलयात्रा वगेरे थयुं हतुं. वहेली सवारमां धर्मना मंगल गीतथी
मंडप गुंजी ऊठतो हतो. आंकडियानी समस्त ग्रामजनता (कणबी वगेरे बधा) आ
उत्सव जाणे पोतानो ज होय–एम उमंगथी भाग लेता हता; रात्रे मंडपमां टोळेटोळां
भक्ति–रास–भजन वगेरे द्वारा पोतानो उमंग व्यक्त करता हता.
एकवार तो प्रवचन चालतुं हतुं त्यां गामडांना कणबी बहेनोनुं टोळुं बाजुमां
गीत गातुं हतुं, तेना अवाजथी एम लाग्युं के कोईने त्यां लग्ननां आ गीत गवाता
लागे छे! –त्यां तो कोईए खुलासो कर्यो के ना रे ना, ए तो बधा गातां गातां
व्याख्यान सांभळवा आवी रह्यां छे! –आवो हतो गामडांनो उमंग!
(ता. प पोष वद ११) सवारमां गुरुदेवना आशीर्वादपूर्वक प्रतिष्ठा उत्सवनो
प्रारंभ थयो; नांदीविधान (आनंदना चिह्नरूप मंगल कळशनुं स्थापन) तथा
ईन्द्रप्रतिष्ठा थई. आठ ईन्द्रो तथा एक कुबेर हता. तेमां सौधर्मेन्द्र तरीके भाईश्री
प्रफुल्लचंद्र परमाणंद हता. अने माता–पिता तरीके भाईश्री पोपटलाल मोहनलाल वोरा
तथा रंभाबेन हता. ईन्द्रोनुं सरघस जोईने ग्राम्यजनता आनंदित थती हती. बपोरे
ईन्द्रोए पंचपरमेष्ठीनुं पूजन (योगमंडलविधान) कर्युं हतुं. रात्रे गर्भकल्याणकनी
पूर्वक्रियानां द्रश्यो