Atmadharma magazine - Ank 280
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९३ आत्मधर्म : २प :
आवा आत्माना अनुभव वगर, ज्ञान वगर जीव अनंत काळमां बीजुं बधुं करी चुक््यो
छे, अशुभभावो कर्या छे ने शुभ पण कर्या छे, पण तेनाथी किंचित् सुख पाम्यो नथी.
देहथी भिन्न चैतन्यस्वरूप आत्मा आनंदथी भरेलो छे, अनंत गुणरूपी रत्नोथी भरेलो
चैतन्यरत्नाकर छे. आवो आत्मा पोते ज छे; पण अज्ञानथी चार गतिमां रखडतां माथे
शुं–शुं वीत्युं एनी एने खबर नथी.
अहीं आनंदस्वरूप आत्मा अने दुःखरूप रागादि–ए बंनेनी भिन्नता
ओळखावीने भेदज्ञान करावे छे. पुण्य–पापथी पार एवा सूक्ष्म अतीन्द्रिय ज्ञानवडे
आत्मा जणाय छे; ईन्द्रियोवडे के रागमिश्रित स्थूळ ज्ञानवडे आत्मा जणातो नथी. केमके
ईन्द्रियो के राग ते आत्मानुं स्वरूप नथी; ईन्द्रियो अने रागथी पार एवुं
अतीन्द्रियज्ञान ते ज आत्मानुं स्वरूप छे, ने तेना वडे ज स्वसंवेदनथी आत्मा जणाय
छे.
– आत्मा पोताने जाणे छे ने रागने पण जाणे छे.
– राग पोते पोताने पण नथी जाणतो, ने परने पण नथी जाणतो.
– रागने ‘आ राग छे’ एम बीजो जाणे छे, पण राग पोते ते नथी जाणतो के
हुं राग छुं. ‘रागथी बीजो’ एटले रागथी जुदो ज्ञानस्वरूप आत्मा, ते रागने जाणे छे.
परंतु आत्माने पोते पोताने जाणवा माटे कोई बीजानी जरूर नथी पडती, केमके पोते ज
ज्ञानस्वरूप होवाथी पोते पोताने जाणे छे. आ जाणनार स्वरूपी आत्मा, अने न
जाणनार एवो राग, –ए बंनेने भिन्नता छे. चेतनस्वरूप आत्मानां किरण तो
ज्ञानरूप छे, रागमां चेतवानो अभाव छे, तेनामां चेतनपणुं नथी, तेथी ते अचेतन छे,
चेतनथी भिन्नछे.
–आवुं भेदज्ञान करवुं ते धर्म छे.
आत्मानुं झरणुं तो आनंदरूप छे, आत्माना झरणामां आकुळता न होय.
आकुळता तो राग छे, दुःखरूप छे. माटे ते रागादि आकुळभावोथी जुदो चेतनस्वरूप
आत्मा हुं छुं
–एवुं भेदज्ञान करवुं ते बंधनथी छूटवानो उपाय छे.
– * –
प्रश्न:– सर्वज्ञनी स्तुति एटले शुं?
उत्तर:– ज्ञानस्वभावी आत्मानी अनुभूति.