
छे, अशुभभावो कर्या छे ने शुभ पण कर्या छे, पण तेनाथी किंचित् सुख पाम्यो नथी.
देहथी भिन्न चैतन्यस्वरूप आत्मा आनंदथी भरेलो छे, अनंत गुणरूपी रत्नोथी भरेलो
चैतन्यरत्नाकर छे. आवो आत्मा पोते ज छे; पण अज्ञानथी चार गतिमां रखडतां माथे
शुं–शुं वीत्युं एनी एने खबर नथी.
ईन्द्रियो के राग ते आत्मानुं स्वरूप नथी; ईन्द्रियो अने रागथी पार एवुं
अतीन्द्रियज्ञान ते ज आत्मानुं स्वरूप छे, ने तेना वडे ज स्वसंवेदनथी आत्मा जणाय
छे.
– राग पोते पोताने पण नथी जाणतो, ने परने पण नथी जाणतो.
– रागने ‘आ राग छे’ एम बीजो जाणे छे, पण राग पोते ते नथी जाणतो के
परंतु आत्माने पोते पोताने जाणवा माटे कोई बीजानी जरूर नथी पडती, केमके पोते ज
जाणनार एवो राग, –ए बंनेने भिन्नता छे. चेतनस्वरूप आत्मानां किरण तो
ज्ञानरूप छे, रागमां चेतवानो अभाव छे, तेनामां चेतनपणुं नथी, तेथी ते अचेतन छे,
चेतनथी भिन्नछे.
आत्मानुं झरणुं तो आनंदरूप छे, आत्माना झरणामां आकुळता न होय.
आत्मा हुं छुं
–एवुं भेदज्ञान करवुं ते बंधनथी छूटवानो उपाय छे.
उत्तर:– ज्ञानस्वभावी आत्मानी अनुभूति.