
भगवानना केवळज्ञानना महिमासूचक घंटनाद थवा लाग्या, ने ईन्द्रो केवळज्ञाननो
महोत्सव करवा आव्या. समवसरण रचायुं ने ईन्द्रोए सर्वज्ञदेवनुं पूजन कर्युं.
त्यारबाद, दिव्यध्वनिमां भगवाने शुं कह्युं? ते वात गुरुदेवे प्रवचनमां समजावी. उत्सव
दरमियान हंमेशां प्रवचनमां त्रण चार हजार माणसोथी मंडप उभराई जतो हतो.
आसपासना गामडामांथी पण लोको उत्सव जोवा उमटया हता; एटलुं ज नहीं, –
गामडाना जुवान कणबी भाईओना मोढामां पण समयसार अने जिनवाणीनां गीत
गवाता हता, ने तेओ पण उत्सवमां आनंदथी भाग लेता हता. सौ कहेता के अमारा
आंकडिया गाममां आवुं क््यांथी होय?
साथे पंचकल्याणक पूरा थया; अने पछी प्रतिष्ठित जिनेन्द्रभगवंतोने जिनमंदिरमां
बिराजमान कर्या. आंकडियानुं आ रळियामणुं जिनमंदिर स्व. बालुभाईनी भावना
अनुसार तेमना धर्मपत्नी कसुंबाबहेने बंधावी आप्युं छे. उत्साही भाईश्री जमुभाई
रवाणीनी दोरवणी नीचे बधी व्यवस्था सुंदर थई हती, ने गामजनोए सर्व प्रकारनो
साथ आप्यो हतो. गुरुदेवना सुहस्ते ज्यारे सीमंधरादि जिनभगवंतोनी स्थापना थई
त्यारे सौने घणो ज हर्ष थयो. अने अमारा अमरेली गाममां पण आवुं जिनमंदिर
गुरुदेवना प्रतापे थाय–एम भक्तो भावना भाववा लाग्या. गुरुदेवना प्रतापे अमारा
हाथे आ जिनेन्द्रभगवंतोने आंगणे पधराववानो अवसर आव्यो–एम आंकडियाना
भाईओने घणी प्रसन्नता थई हती, ने चारे कोर जयजयकार गाजता हता. नीचेनी वेदी
उपर सीमंधर भगवान, आदिनाथ भगवान, महावीर भगवान तथा नेमनाथ
भगवान बिराजे छे, उपरना भागमां शांतिनाथ भगवान बिराजे छे. ते उपरांत
गुरुदेवना सुहस्ते जिनवाणीमातानी पण स्थापना थई. पछी कळश अने ध्वज
चडाव्या...ने मंगल प्रतिष्ठामहोत्सव आनंदपूर्वक पूर्ण थयो. ते जिनेन्द्रभगवंतो जगतनुं
कल्याण करो.
हती, आखुं गाम हर्षोल्लासमय हतुं. आवो उत्सव देखीने बपोरे श्री कपुरभाई तथा
झवेरभाई गुरुदेवने कहेता हता के अहींनो उत्सव आवो आनंदकारी, तो ज्यारे